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जो अन्न उपजाता है वही भूखा रह जाता है : देविंदर शर्मा

खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध दो कारणों से हो रहा है. एक राजनीतिक और दूसरा कॉरपोरेट घरानों या उनके समर्थक अर्थशास्त्रियों की ओर से. उनका कहना है कि खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये  खर्च होगा. इससे घाटा बढ़ेगा इसलिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रु पए ख़र्च होने पर एतराज़ जताया जा रहा है....

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गरीबों की सेहत का रखवाला बाजरा

एक जमाने से बाजरा गरीबों की सेहत का रखवाला माना जाता रहा है और अब जर्नल ऑव न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन से इस बात की पुष्टी हुई है कि बाजरे की कई नई किस्मों में आयरन की मात्रा कई गुना बढ़ायी जा सकती है। मान्यता रही है कि बाजरे में अन्य अनाजों की तुलना में आयरन की मात्रा 10 फीसद ज्यादा होती है और आयरन की कमी से ग्रस्त...

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सबकी धरती, सबका हक- प्रियंका दुबे

लापोड़िया और रामगढ़ की कहानी देश में चौतरफा फैले जल संकट का समाधान तो सुझाती ही है, लेकिन उससे भी बढ़कर सामाजिक समानता की नींव पर बने एक प्रगतिशील समाज का सपना भी साकार करती है. रिपोर्ट और फोटो: प्रियंका दुबे ऐसे समय में जब पानी की किल्लत दिल्ली-मुंबई से लेकर जयपुर तक सैकड़ों भारतीय शहरों को सूखे नलों के मकड़जाल और अनंत प्रतीक्षा के रेगिस्तान में तब्दील कर रही है,...

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पानी बचाने की मुहिम में जुटा पुलिस अफसर ।। राजेंद्र कुमार ।।

* हजारीबाग के रहनेवाले हैं आइपीएस महेंद्र मोदी - न कोई संस्था, न परचा-पोस्टर और न समाज सेवा के नाम पर इधर-उधर से पैसा झटकने की तिकड़म. यह एक सेवारत आइपीएस अफसर का जुनून है, जिसने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से लेकर राजस्थान तक जल संकट से जूझ रहे ग्रामीणों को पानी बचाने के अभियान से जोड़ा और संकट को दूर किया. अब वह पानी बचाने के अपने इस मुहिम को अन्य राज्यों...

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पीड़ा में पहाड़िया- निराला की रिपोर्ट

झारखंड से लेकर बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा तक फैले पहाड़िया समुदाय के लिए जिंदगी उतनी ही दुश्वार है जितनी सदियों पहले थी. धरती के सबसे पुराने बाशिंदे कहे जाने वाले इन लोगों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं. निराला की रिपोर्ट. हम झारखंड के सुंदरपहाड़ी इलाके के पहाड़ों पर हैं. चेबो नाम के एक गांव में, जिस तक उजले भारत की कोई चमक अब तक नहीं पहुंची है, हां, शोषण जरूर उन...

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