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गांधी और आंबेडकर का रिश्ता- श्रीभगवान सिंह

जनसत्ता 7 जुलाई, 2012: पिछले दो-तीन दशकों का एक बड़ा राजनीतिक यथार्थ यह है कि राष्ट्रपिता के रूप में समादृत गांधी के ऊपर डॉ भीमराव आंबेडकर को न सिर्फ खड़ा करने, बल्कि गांधी को आंबेडकर और दलित विरोधी भी सिद्ध करने की कोशिश लगातार की जा रही हैं। यह सब हो रहा है आंबेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले आंबेडकरवादियों द्वारा, क्योंकि इसके जरिए उनके लिए एक समुदाय...

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विकास का शौचालय सिद्धांत- यशवंत व्यास

आत्मविकास की परंपरा में शौचालय का भारी योगदान रहा है। दिशा-मैदान की भारतीय रीति ने कई लोगों को दिमागी तौर पर परेशान किया। कहा जाता है कि गांवों में जंगल की झाड़ियों को ढूंढने और लौटते समय कुएं से दातौन चबाते हिंदुस्तानी लोग परदेसियों के लिए अजूबे थे। भूमिपुत्रों के देश में शौचालय की परंपरा का आगमन आयातित संस्कृति का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इससे कौन इनकार करेगा कि महानगरों...

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एक लाख लोगों को दूषित पानी

शिमला. प्रदेश के करीब एक लाख लोगों को को आईपीएच विभाग ‘जहरीला’ पानी पिला रहा है। राजधानी शिमला में भी करीब ८ हजार लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग की 155 पेयजल स्कीमों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। इन पेयजल स्कीमों से करीब 350 बस्तियों को पानी की सप्लाई की जाती है। राज्य की मौजूदा कैबिनेट में तीन-तीन मंत्री देने वाले मंडी जिले में सबसे...

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तुम केवल एक छवि हो?- गोपालकृष्ण गांधी

‘तुमि की केबोलि छोबि?’ (तुम क्या केवल एक छवि हो?) कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर अपनी एक रचना में अपने सामने रखी एक छवि से पूछते हैं। उस प्रश्न का संदर्भ अपने में कुछ है। प्रश्न का उत्तर भी, जो कि वे स्वयं देते हैं, अपने में मौलिक है। दो हजार ग्यारह के अपने इस अंतिम स्तंभ में वही प्रश्न मैं, अदना-सा एक इंसान, भारत माता की छवि से पूछना चाहता हूं...

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विकास का विद्रूप- सुनील

राहुल गांधी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के नौजवानों को फटकारते हुए जब कहा कि कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगोगे और पंजाब में मजदूरी करोगे, तो कई लोगों को यह बात नागवार गुजरी। उनकी भाषा शायद ठीक नहीं थी। आखिर देश के अंदर रोजी-रोटी के लिए लोगों के एक जगह से दूसरी जगह जाने को भीख मांगना तो नहीं कहा जा सकता। वे अपनी मेहनत की रोटी खाते हैं, भीख या...

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