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उन पांच दिनों के नाम-- जयंती रंगनाथन

बात 1993 के अक्तूबर की है। पत्रकारों का एक दल लातूर में आए भूकंप का जायजा लेने मुंबई से वहां जा रहा था। उस दल में मैं भी थी। मुंबई से पुणे होते हुए दस घंटे की उस बस यात्रा के बाद जब सब थके-हारे चाय और खाने की तलाश में दो-चार हो रहे थे, मैं ढूंढ़ रही थी दवाई की दुकान। दुकान तो मिल गई, पर जब उससे पूछा,...

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अपनों से ही शर्मसार होती मानवता-- राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

आंकड़े भले ही दिल्ली के हों, पर कमोबेश यह तस्वीर सारी दुनिया की देखने को मिलेगी। राजधानी दिल्ली में 2017 की आपराधिक गतिविधियों की बाबत दिल्ली पुलिस द्वारा इसी माह जारी आंकड़ों में कहा गया है कि बलात्कार के सत्तानवे फीसद मामलों में महिलाएं अपनों की ही शिकार होती हैं। अपनों से मतलब साफ है कि या तो रिश्तेदार या जान-पहचान वाले या फिर दोस्त। इसका मतलब यही निकल के...

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भारत के 1 फीसदी लोगों के पास 73% आबादी से अधिक धन-दौलत

भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता के नए आंकड़े चौंकाने वाले हैं. देश में एक फीसदी लोगों के पास 73 फीसदी आबादी की आमदनी से भी ज्यादा पैसा है. हाल में आए इंटरनेशनल राइट्स समूह ऑक्सफैम की सर्वे रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि भारत के सबसे अमीर 1 फीसदी लोगों के पास देश के 73 प्रतिशत लोगों की इनकम से भी ज्यादा पैसा है. वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (विश्व आर्थिक...

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गरीबी नहीं गैरबराबरी है चुनौती-- मृणाल पांडे

एक जमाना था, जब कक्षा से चुनावी भाषणों तक में ‘अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है?' जैसे जुमले सुनने को मिलते थे. भला हो राग दरबारी के लेखक श्रीलाल शुक्ल का, जिन्होंने इस उपन्यास के मार्फत आजादी के बाद हमारे बदहाल गांवों की असलियत दिखाकर इस पाखंड पर ऐसी चोट की कि पढ़ने-लिखनेवाले लोग इस भावुक और निरर्थक मुहावरे से बचने लगे. फिर ‘90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण...

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Jharkhand : किसानों का हाल बेहाल, अभी ही सूख गयी नदी....

खरौंधी : झारखंड के गढ़वा जिले में किसानों का हाल बेहाल है. खासकर खरौंधी प्रखंड में. खेतों की प्यास बुझाने वाली एकमात्र नदी अभी से सूख गयी है. किसानों के साथ-साथ लोगों को यह चिंता सताने लगी है कि जब सर्दी में ही नदी का पानी खत्म हो गया, तो गर्मी में क्या होगा? खेतों की प्यास कैसे बुझेगी? खेतीबारी कैसे होगी? ढढरा नदी के सूख जाने की वजह से प्रखंड...

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