मैं 1988 के पूर्वार्द्ध में उत्तराखंड में शोध कर रहा था, जब उसी क्षेत्र में एक बहादुर नौजवान पत्रकार की हत्या की खबर आई। उसका नाम उमेश डोभाल था। उसने शराब माफिया, पुलिस, आबकारी विभाग व स्थानीय राजनेताओं की सांठगांठ का पर्दाफाश किया था। उसे शराब ठेकेदारों के भाड़े के हत्यारों ने मारा था। 1988 के उत्तरार्द्ध में मैं दिल्ली में रह रहा था, जब लोकसभा द्वारा प्रेस की आजादी को...
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माना कि अच्छे दिन अभी नहीं आए हैं...- तवलीन सिंह
इस लेख को लिखते हुए मुझे दुख होता है, लेकिन लिखना जरूरी है, क्योंकि जिस तरह अरुण शौरी ने पिछले सप्ताह मोदी सरकार की आलोचना की, वह मुझे निजी तौर पर बुरा लगा। मैंने जब से पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, तब से मैं शौरी साहिब का सम्मान करती आई हूं। संयोग से मुझे अखबार में पहली नौकरी इमरजेंसी लगने से एक महीना पहले मिली थी। उस दौर...
More »हां! हमने बंदूक के बल पर लिया आरक्षण
भिवानी 6 अप्रैल (हप्र) भिवानी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कैप्टन हवा सिंह सांगवान। -हप्र भिवानी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कैप्टन हवा सिंह सांगवान। -हप्र अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष कमांडेट हवासिंह ने माना कि हरियाणा में गन प्वाइंट पर ही आरक्षण लिया गया है। उन्होंने यह बात उस संदर्भ में कही जब...
More »छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक और पत्रकार गिरफ्तार
रायपुर: सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में एक पत्रकार को पकडे जाने के कुछ दिन बाद एक अन्य पत्रकार को छत्तीसगढ के बस्तर क्षेत्र में स्कूल में जबरन घुस आने और कर्मचारियों से दुव्यर्वहार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. दंतेवाडा जिले के पुलिस अधीक्षक कमल लोचन कश्यप ने आज भाषा को दूरभाष पर बताया कि जिले के गीदम थाना क्षेत्र में पुलिस ने शासकीय...
More »कहीं पत्रकारिता की शक्ल अचानक बदलने तो नहीं लगी...?-- सुधीर जैन
पत्रकारिता पर क्या वाकई विश्वसनीयता का संकट आ गया है...? यह सवाल विद्वान लोग उठाते थे, अब जनसाधारण में ये बातें होने लगी हैं। पहले और अब में एक फर्क यह भी है कि पहले अपनी विश्वसनीयता के कारण पत्रकारिता जनता पर जितना असर डालती थी, अब उतना नहीं डाल पाती। अब तो मीडिया का पाठक या दर्शक हाल के हाल उसकी ख़बरों और खयालों पर टीका-टिप्पणी करने लगा है।...
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