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भावांतर भुगतान योजना : कम पंजीयन से बढ़ी चिंता, लगवाई विशेष ग्रामसभा

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना में कम पंजीयन ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। दरअसर, सरकार इस योजना को कर्जमाफी के तोड़ के रूप में प्रस्तुत कर रही है। पंजीयन बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को खुद मोर्चा संभाल लिया। रेडियो और टीवी के माध्यम से उन्होंने विशेष ग्रामसभा लगवाकर किसानों से सीधी बात की। मुख्यमंत्री ने योजना को महाबोनस करार देते...

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पशुपालन से टूटता मोह--- रीता सिंह

यह चिंताजनक है कि कृषि प्रधान देश भारत में पशुपालन के प्रति लोगों की अरुचि बढ़ती जा रही है। मवेशियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। आजादी के बाद से 1992 तक देश में मवेशियों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। लेकिन उसके बाद इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। 2007 में पशुओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई थी लेकिन उसके बाद इनकी...

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फसल अच्छी हुई फिर भी किसान की प्रतिदिन आय केवल 82.5 रुपए

सारंगपुर (प्रदीप जैन/अकरम अंसारी)। खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय को दोगुना करने की बातें केवल प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के भाषणों तक सिमटी नजर आती हैं। किसानों की वास्तविक स्थिति देखें तो हालात कुछ और ही दिखाई देते हैं। वर्तमान में खेती-किसानी लाभ का धंधा तो दूर की बात आजीविका चलाने का साधन तक नहीं बन पाई है। किसानों की प्रतिदिन आय को देखकर यह अंदाजा...

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महानंदा पर तटबंध से तबाही--- मणीन्द्र नाथ ठाकुर

हाल में प्रसिद्ध विद्वान अयाची मिश्र के गांव सरिसबपाही में मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा करने का मौका मिला, तो नजदीक से उनको सुना. उनका कहना था कि 'हमें प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए; प्रकृति हमें इसकी सजा देती है.' अपने शोध के सिलसिले में कटिहार के कदवा प्रखंड में महानंदा तटबंध के अंदर कुछ गांवों में घूमते हुए बाढ़ से प्रताड़ित लोगों से मिलने का मौका मिला....

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भीड़तंत्र से शोरतंत्र तक-- शशि शेखर

पिछले एक हफ्ते से आप सिर्फ बिलखते लोगों की तस्वीरें देख रहे होंगे। गोरखपुर में अकाल काल के गाल में समा जाने वाले नौनिहालों के रोते-चीखते परिजन, नोएडा में जेपी, आम्रपाली सहित तमाम बिल्डर्स के शिकार मध्यवर्गीय लोग, कर्ज-माफी की घोषणा के बावजूद अपनी जान देने पर मजबूर किसान, केरल में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के परिजन...। क्या गुजरे 70 सालों में हमने यही कमाया है? यह गम और गुबार...

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