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पशुधन का कुपोषण से क्या रिश्ता है ?

हम जानते हैं कि कुपोषण का बोझ देश के जमीर और जेब दोनों पर भारी है।हम यह भी जानते हैं कि बाल-कुपोषण से छुटकारा पाना बड़े साहस और धैर्य की मांग करता है। लेकिन कुपोषण से छुटकारा पाने की स्थिति में जो आर्थिक फायदे होंगे- क्या हमें उन फायदों के बारे में पता है? एफएओ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत बाल-कुपोषण को खत्म करके अपनी आय में 28 अरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा कर सकता है।यह बड़े आर्थिक...

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भारत और इंडिया का फर्क- सुनील खिलनानी

हमारा यह कहना सही है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान और वैश्विक कारोबार में अपनी ऐतिहासिक हिस्सेदारी को फिर से प्राप्त कर रहा है। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ अन्य अहम तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, गरीबी खत्म करने, जनकल्याण के लिए कुछ मूलभूत सुविधाएं जुटाने और नए खतरों को कम करने की क्षमता अब हमारे भीतर है। यह क्षमता होने के बावजूद हमने...

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कृषि की कम होती भूमिका में खाद्य संकट- रवि शंकर

बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण व अन्य कारणों से घटती जमीन, आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के कारण भारतीय कृषि भारी दबाव में है। यह सच है कि देश की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। देश की 52 प्रतिशत  श्रमशक्ति कृषि तथा इससे जुड़े क्षेत्रों से ही अपना जीविकोपार्जन कर रही है। फिर भी संकट का अंदाजा इस तथ्य से  लगाया जा सकता है कि राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में...

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दस साल में तीन गुना बढ़ी भारतीयों की औसत संपत्ति

दिल्ली. देश में भले ही बड़ी संख्या में गरीब रहते हों, लेकिन प्रति भारतीय औसत संपत्ति विगत दस वर्षो में तीन गुनी बढ़कर 5,500 डॉलर (करीब 2.70 लाख रुपए) हो गई है। इसी के साथ कुल वैश्विक संपत्ति में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों की सूची में भारत छठे पायदान पर आ गया है। इसके बावजूद भारतीयों की औसत संपत्ति 51 हजार डॉलर के इसके वैश्विक आंकड़े की तुलना में काफी कम...

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बत्तीस के फेर में गरीबी : इला भट्ट

अब देश की सरकार गरीबी के मानदंडों में संशोधन करने जा रही है, जैसे कि देश को पता ही न हो कि गरीबी के मायने आखिर क्या हैं! सरकार का मानना है कि शहरी क्षेत्र में एक दिन में 32 रुपए और ग्रामीण क्षेत्र में एक दिन में 26 रुपए से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति ‘गरीब’ नहीं माना जा सकता और इसलिए वह सरकार की विभिन्न हितकारी योजनाओं के लिए पात्र...

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