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किसानी से डरने वाला समाज-- मृणाल पांडे

आज के भारत भाग्य विधाता मानें या नहीं, अन्न उत्पादन के मामले में भारत का आत्मनिर्भर बन जाना, बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटनाओं और हमारी राष्ट्रीय उपलब्धियों में से है. लेकिन, कम लोगों को याद होगा कि हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग ने नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते वक्त भाषण में दो बातें कही थीं. पहला, हरित क्रांति अमरता की बूंदें पी कर नहीं आयी. इसका भी किसी दिन...

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पलायन का दर्द : न नरेगा ने रोका और न रोक पा रही मनरेगा..

दरभंगा : मलमास में कोई शुभ कार्य नहीं होता. यात्रा से भी परहेज का विधान है, लेकिन पेट की आग ने मिथिला क्षेत्र के मजदूरों को इस विधान व परंपरा को तोड़ने के लिए विवश कर दिया है. रोजी-रोटी की जुगाड़ में मिथिला के मजदूर इन दिनों पंजाब व हरियाणा जा रहे हैं. अपने गांव में काम मिल नहीं रहा. न तो मनरेगा से रोजगार मिल रहा है और न...

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रोजगार और सामाजिक सुरक्षा-- अनुज लुगुन

मई दिवस का सप्ताह श्रमिकों के संघर्ष के इतिहास, उनके अधिकार और भविष्य में उनकी स्थिति के विश्लेषण, बहस और नारेबाजी का सप्ताह बन जाता है. ‘दुनिया के मजदूरों एक हो' के बुलंद नारों के साथ यह धीरे-धीरे अगले मई दिवस तक के लिए गुम हो जाता है. श्रम और उसके मूल्य का संबंध मानव समाज के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है. विभिन्न समय में यह अलग-अलग रूपों...

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बुजुर्गों की बदहाली-- मणींद्र नाथ ठाकुर

कहा जा रहा है कि दुनिया अब बूढ़ी हो रही है. पचास के दशक की तुलना में 21वीं शताब्दी में साठ साल से ऊपर की उम्र के लोगों की संख्या तीन गुनी ज्यादा हो जायेगी. भारत में भी लगभग आठ प्रतिशत जनसंख्या साठ से ऊपर है, बिहार जहां अपेक्षाकृत युवा ज्यादा हैं, वहां भी यह प्रतिशत सात से कम नहीं है. लेकिन दुनिया के विकसित देशों की तरह भारत में...

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चंपारण से निकला रास्ता- राजू पांडेय

चंपारण सत्याग्रह नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष के रूप में विख्यात है। इसके एक सदी बाद भी देश का किसान बदहाल है। 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 67.04 प्रतिशत किसान परिवार सीमांत हैं जबकि 17.93 प्रतिशत कृषक परिवार लघु की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने संसद को राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जुलाई 2012 से जून 2013 के संदर्भ में संकलित...

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