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बिहार की चमत्कारिक आर्थिक वृद्धि- मिथक या यथार्थ

क्या यह बात सच है कि विकास के मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को महज चार सालों में गुजरात के करीब पहुंचा दिया है। समाचारों की माने तो सचमुच ऐसा ही है( देखें नीचे दी गई लिंक) लेकिन आंकड़ों का विश्लेषण ऐसा कहने से इनकार करता है।   बिहार की आर्थिक प्रगति के अर्धसत्य को परोसने के लिए समाचारों में आधार बनाया गया है केंद्रीय सांख्यिकी एवम् कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय...

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आबादी बनाम उत्सर्जन-टी. एन. नाइनन

वर्ष 1992 में रियो पृथ्वी सम्मेलन के साथ ही जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को सूचकांक के तौर पर आम स्वीकृति मिल गई थी। चूंकि अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भारत के मुकाबले 10 गुना अधिक है, इसलिए जब सुधारात्मक कार्रवाई की बात आती है तो उसकी जवाबदेही भारत से अधिक है। यह तथ्य 1997 में क्योटो समझौते का आधार बना, जिसके तहत बड़े...

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दो सिरदर्द का एक इलाज

चीन के साथ तनाव और माओवादियों द्वारा पेश की गई चुनौतियों ने पिछले कुछ हफ्तों से अखबारों की काफी सुर्खियां बटोरी हैं। हालांकि इन दोनों मसलों का एक दूसरे से जुड़ाव नहीं दिखता, लेकिन ये दोनों तब एक साथ केंद्र में आ जाते हैं जब हम आर्थिक विकास व मानव विकास के मुख्य आंकड़ों पर नजर डालते हैं। पहले चीन की बात करते हैं। वैश्विक आर्थिक प्रभाव, कूटनीतिक पहुंच, सैन्य शक्ति व...

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भुखमरी और कुपोषण के हालात बयान करते दो और रिपोर्ट

दो जून भर पेट भोजन ना जुटा पाने वालों की तादाद दुनिया में इस साल एक अरब २० लाख तक पहुंच गई है और ऐसा हुआ है विश्वव्यापी आर्थिक मंदी और वित्तीय संकट(२००७-०८) के साथ-साथ साल २००७-०८ में व्यापे आहार और ईंधन के विश्वव्यापी संकट के मिले जुले प्रभावों के कारण। यह खुलासा किया है संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की हालिया रिपोर्ट ने । द...

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भूख का बढ़ता भूगोल

भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...

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