जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...
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मुद्दा: गरीब की नई परिभाषा
गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते...
More »स्वर्ग जाएगी पेंशन!- राजीव शर्मा
राजीव शर्मा, अलीगढ़ : अपने जिले में सरकारी तंत्र ने मुख्यमंत्री महामाया गरीब आर्थिक मदद योजना को मजाक बनाकर रख दिया है। पंचायत सचिवों ने बिना सत्यापन के योजना में ऐसे लोगों के नाम भेज दिए हैं, जो कतई पात्र नहीं हैं। इनकी संख्या भी कोई एक-दो नहीं, पूरी 9894 है। इनमें 166 ऐसे लोग भी शामिल कर लिए गए हैं, जो इस दुनिया में ही नहीं हैं। योजना के तहत मिलने...
More »पंचायतों की होगी अपनी वेबसाइट
रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के सभी स्थानीय निकायों की वेबसाइट बनाने का फैसला किया है, जिसके माध्यम से लोगों तक सही जानकारी पहुंचाई जाएगी। आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को यहा बताया कि छत्तीसगढ़ की पंचायती राज संस्थाओं की जानकारी एक ही जगह उपलब्ध कराने और पंचायतों की उपलब्धिया जनता के सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए छत्तीसगढ़ की सभी 18 जिला पंचायतों, 146 जनपद पंचायतों...
More »बढ़ते गरीब और बेमानी बहस - अश्वनी कुमार
देशभर के शहरों में रहनेवाले गरीबों के आंकड़े जुटाने के लिए एक जून से सात माह का सर्वे शुरू हो चुका है. इसके साथ ही गरीबों की पहचान के मानदंड पर बहस भी फ़िर छिड़ गयी है. यह विडंबना ही है कि तमाम योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है. शहरी गरीबों की गणना की खबरों के साथ ही गरीबी को लेकर जारी बहस फ़िर छिड़ गयी है....
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