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समावेशी विकास के प्रतिमान-- अनंत कुमार

भारत की अलौकिक सुंदरता इसकी संस्कृतियों, परंपराओं, लोगों, प्राकृतिक दृश्यों, भाषाओं आदि की विविधता में निहित है. इसका विशाल विस्तार भी ऐसी चुनौतियां प्रस्तुत करता है, जो केवल इस देश के लिए विशिष्ट हैं. अत: इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे उपायों की जरूरत है, जो प्रत्येक स्थिति के लिए उपयुक्त हों. भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडा में अन्य के साथ-साथ गरीबी, सतत विकास, स्वास्थ्य, पोषण, लैंगिक...

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नये बिहार की चुनौतियां!-- केसी त्यागी

हार उपचुनाव के नतीजे और रामनवमी के बाद के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया के एक तबके के साथ कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा बिहार सरकार की आलोचना सुर्खियों में रहीं. इस क्रम में स्थानीय शासन-प्रशासन की तथाकथित विफलता को भी खूब स्थान दिया गया, जिसमें राज्य के कुछ जिलों में हुई सांप्रदायिक झड़पों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन व्यवस्था पर भी सवाल उठाये गये. किसी भी शासनाध्यक्ष के लिए ऐसी...

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उपेक्षा की मार झेल रहा एक जिला-- योगेन्द्र यादव

पिछले सप्ताह से यह सवाल मेरे मन में बार-बार घूम रहा है. पिछले सप्ताह नीति आयोग ने देश के सबसे पिछड़े 101 जिलों की सूची जारी की. इस सूची में सबसे ऊपर यानी देश का सबसे पिछड़ा जिला होने का श्रेय हरियाणा के मेवात जिले को जाता है (आजकल इसका सरकारी नाम जिला मुख्यालय के नाम पर नुहू कर दिया गया है). बिहार के अररिया, छत्तीसगढ़ के सुकमा, उत्तर प्रदेश...

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कचरे के निपटारे की चुनौती-- मोनिका शर्मा

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2047 तक भारत में कूड़े का ‘उत्पादन' पांच गुना बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है कि हमारा देश दुनिया भर में कूड़े का सबसे बड़ा उत्पादक बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यह बहुत चिंताजनक है, एक ऐसे देश में, जहां कूड़ा प्रबंधन पहले से ही बहुत बड़ी समस्या है। इतना ही नहीं, हमारे यहां पारंपरिक तरल और ठोस कूड़े के अलावा...

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शिक्षक को मजबूर बनाती व्यवस्था-- मनीषा सिंह

हमारे समाज में शिक्षक काफी सम्मान का पात्र समझा जाता रहा है। देश की भावी पीढ़ी या भविष्य कहलाने वाले बच्चों और अंतत: समाज को शिक्षा व सही दिशा-निर्देश देने की शिक्षक की भूमिका में तो अब भी कोई बदलाव नहीं हुआ है, पर आधुनिक व्यवस्था में वह समाज के सबसे निरीह प्राणी के रूप में देखा जाने लगा है। इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि शिक्षक के रूप...

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