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न्यूज क्लिपिंग्स् | समावेशी विकास के प्रतिमान-- अनंत कुमार

समावेशी विकास के प्रतिमान-- अनंत कुमार

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published Published on Apr 18, 2018   modified Modified on Apr 18, 2018
भारत की अलौकिक सुंदरता इसकी संस्कृतियों, परंपराओं, लोगों, प्राकृतिक दृश्यों, भाषाओं आदि की विविधता में निहित है. इसका विशाल विस्तार भी ऐसी चुनौतियां प्रस्तुत करता है, जो केवल इस देश के लिए विशिष्ट हैं.

अत: इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे उपायों की जरूरत है, जो प्रत्येक स्थिति के लिए उपयुक्त हों. भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडा में अन्य के साथ-साथ गरीबी, सतत विकास, स्वास्थ्य, पोषण, लैंगिक समानता, स्तरीय शिक्षा जैसे मुद्दों पर उपायों का उल्लेख किया गया है, जो समावेशी और संधारणीय समाज सृजित करने के संबंध में इसकी प्रतिबद्धता को दोहराता है.

ऐतिहासिक रूप से भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के लिए हस्ताक्षर करता रहा है और उनमें सक्रियता से भागीदारी करता रहा है.
सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) एक ऐसा ही महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय परमाधिकार था, जिसने संसार के लिए विकासात्मक प्रतिमानों को पुन: सूत्रबद्ध किया था. इसने सभी राष्ट्रों द्वारा हासिल किये जाने के लिए अकाट्य लक्ष्य निर्धारित किये, ताकि वे अपने राष्ट्र और अपने लोगों का विकास करने में पीछे न रह जायें. इस 15 वर्ष की अवधि ने बुनियादी विकास के मुद्दों पर अत्यावश्यक ध्यान केंद्रित करने में मदद की.

संक्षिप्त पृष्ठभूमि यह है कि एमडीजी 18 मात्रात्मक उद्देश्यों के साथ आठ लक्ष्यों का एक सेट था. संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (यूएनडीजी) ने 2003 में कार्य-निष्पादन को मापने के लिए इन निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप 53 संकेतकों का एक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराया था. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई), भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया भारत का एमडीजी फ्रेमवर्क, यूएनडीजी फ्रेमवर्क पर आधारित था और इसमें आठ लक्ष्य, भारत के लिए प्रासंगिक 18 में से 12 उद्देश्य और देश की प्राथमिकता के अनुसार 53 में से 35 संकेतक शामिल हैं.

एमडीजी के संबंध में भारत की प्रगति का आकलन करने हेतु एमओएसपीआई द्वारा तैयार की गयी साल 2015 की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत ने बुनियादी सर्वव्यापी शिक्षा, शिक्षा में लैंगिक समानता और वैश्विक आर्थिक विकास के मानदंडों के संबंध में अच्छा कार्य-निष्पादन किया है.

एमडीजी की समयावधि के बाद सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का समय आया जो एमडीजी की समयावधि में शुरू किये गये कार्य को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है.

एसडीजी संदर्भ का एक सर्वव्यापक फ्रेम हैं, जिसमें विकास का हर संभव मानदंड शामिल है और इनका दायरा काफी अधिक समग्र और समावेशी है. एमडीजी के विपरीत, एसडीजी को व्यापक अंतरराष्ट्रीय बातचीत द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें सामान्य-आय और कम-आय वाले देश शामिल थे. वस्तुत: भारत ने भी एसडीजी को तैयार करने में एक प्रमुख भूमिका निभायी और इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि भारत का अधिकांश राष्ट्रीय विकास एजेंडा एसडीजी में प्रतिबिंबित होता है.

एसडीजी की व्यापक मैपिंग यह दर्शाती है कि एसडीजी ने एक नया, जन-केंद्रित विकास एजेंडा सृजित किया है. एसडीजी ने लोगों और उनकी तात्कालिक जरूरतों को सबसे आगे रखा है, जो इसके 17 लक्ष्यों में स्पष्ट रूप से दिखायी देती हैं.

एसडीजी एमडीजी का अधिक विस्तृत और एकीकृत रूपांतर हैं और इसमें कुछ विशिष्ट लक्ष्य जोड़े गये हैं जैसे कि उद्योग, नवप्रवर्तन और अवसंरचना (एसडीजी-9), उत्तरदायित्वपूर्ण उपभोग और उत्पादन (एसडीजी-12), शांति, न्याय और सशक्त संस्थान (एसडीजी-16) संबंधी लक्ष्य. वस्तुत: एसडीजी अधिक विस्तृत और अंत:संबद्ध हैं और ये उन पहलुओं को परिवर्तित करने का अवसर प्रदान करते हैं, जिन्हें एमडीजी द्वारा केवल सरसरी तौर पर उठाया गया था. इन दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर इस तथ्य में है कि एमडीजी के विपरीत, एसडीजी की प्रकृति अधिक सर्वव्यापी है.

इन्हें तैयार करने की प्रक्रिया समावेशी और सहभागितापूर्ण थी, इन्होंने गरीबी और भुखमरी के बीच महत्वपूर्ण भेद किया है और अन्य के साथ-साथ, लैंगिक समानता और असमानता पर जोर देनेवाले अलग-अलग लक्ष्य विद्यमान हैं.

तथापि, एसडीजी की एक महत्वपूर्ण आधारशिला मूल्यांकन और जवाबदेही के रूप में है, जिसकी व्यवस्था एमडीजी में नहीं की गयी थी. संयुक्त राष्ट्र में हाई लेवल पॉलिटिकल फोरम की स्थापना की गयी है और वैश्विक स्तर पर, सतत विकास लक्ष्यों के लिए 2030 एजेंडा की समीक्षा और अनुवर्ती कार्रवाई के संबंध में इसकी केंद्रीय भूमिका है.

स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से ऐसी अनुवर्ती कार्रवाइयां की जा रही हैं. जैसा कि 2030 एजेंडा के पैरा 84 में अनुबंधित है, एचएलपीएफ द्वारा की जानेवाली नियमित समीक्षाएं ‘स्वैच्छिक, राष्ट्र की अगुआई वाली होनी चाहिए, इन्हें विकसित और विकासशील, दोनों प्रकार के देश करेंगे और ये समीक्षाएं प्रमुख समूहों और अन्य संगत हितधारकों की सहभागिता सहित साझेदारियों के लिए एक मंच उपलब्ध कराएंगी.'

ऐसी समीक्षा और मूल्यांकन फ्रेमवर्क तैयार करने का एक महत्वपूर्ण परिणाम डेटा क्रांति के रूप में प्राप्त होगा, जो भारत जैसे देश के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. यह पहले से ही विद्यमान डेटा स्रोतों को और अधिक पृथक-पृथक करने और सुप्रवाही बनाने तथा देश द्वारा ध्यान दिये जाने की अपेक्षा वाले क्षेत्रों को चिह्नित करने हेतु इनका उपयोग करने का उचित समय है.

इस घटनाक्रम के अनुरूप, भारत सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है. हमारे देश में एसडीजी के कार्यान्वयन की निगरानी करने का दायित्व भारत सरकार के राष्ट्रीय थिंक टैंक नीति आयोग को सौंपा गया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय एसडीजी के लिए राष्ट्रीय संकेतक तैयार कर रहा है.

भारत में एसडीजी को हासिल करने के लिए केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों, स्थानीय सरकारों, सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्रक द्वारा समन्वित प्रयास करना बहुत आवश्यक है. यदि हम वास्तव में अपने देश और संसार को बेहतर और संधारणीय स्थान बनाना चाहते हैं, तो एसडीजी का स्थानीकरण और मानवीकरण करना होगा.

https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/inclusive-development-pattern-poverty-sustainable-development-health-nutrition-gender-equality-level-education/1145792.html


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