शशि शेखर, हजारीबाग। सालों सरकार और प्रशासन का मुंह ताकते रहे। आश्र्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। फिर ठाना कि अब किसी के आसरे नहीं रहना। खुद मेहनत का निश्चय किया और हाथ से हाथ जोड़े। चार माह अनवरत एक दर्जन से अधिक गांवों के हजारों लोगों ने श्रमदान किया। चंदा कर पैसे जुटाये। हजारीबाग (झारखंड) के चौपारण स्थित लराही गांव में यह मेहनत अब रंग लाई है। बरसात से पहले...
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राज्य के पास दूध, अंडा, मांस व ऊन उत्पादन का ब्योरा नहीं
पटना : राज्य में एक साल से मांस, अंडा, दूध और ऊन के उत्पादन में विकास या कमी का कोई ब्योरा नहीं है. देश के स्तर पर सभी राज्यों को तीन माह में एक बार प्रति व्यक्ति मांस, अंडा, दूध और ऊन का उत्पादन ओर खपत का ब्योरा केंद्र सरकार को देना होता है. इस ब्योरा के आधार पर राज्य सरकार भी पशुधन के विकास की योजना तैयार करती...
More »शहरीकरण की विसंगतियां--- रमेश कुमार दूबे
शहरीकरण को लेकर सरकार का नजरिया यह है कि इस पर सियापा करने के बजाय इसे मौके के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके मुताबिक शहरों में गरीबी दूर करने की ताकत होती है और हमें इस ताकत को और आगे बढ़ाना चाहिए ताकि आर्थिक समृद्धि का स्वत: प्रसार हो। सुख-सुविधाओं की मौजूदगी के चलते शहर सदा से मनुष्य के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। आज की तारीख में तो ये...
More »सहेजना जरूरी है बरसात का पानी-- अतुल कनक
भारत कृषि प्रधान देश है। आज भी देश के किसानों का एक बड़ा वर्ग अपनी फसलों के लिए बादलों की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखता है। मानसून का अच्छा या बुरा होना, हमारी फसलों की पैदावार के अच्छे या बुरे होने को तय करता है। लेकिन बदली जीवन शैली में जिन लोगों का कृषि संबंधी गतिविधियों से सीधा सरोकार नहीं है, मानसून उनसे भी अपने यथोचित स्वागत की अपेक्षा...
More »आर्थिक सुधारों के दौर में- तवलीन सिंह
पच्चीस साल पहले लाइसेंस राज को समाप्त करने का पहला कदम उठाया था प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने। अफसोस कि जिस तरह नरसिंह राव को भुलाने का काम किया है कांग्रेस पार्टी ने, उसी तरह देशवासियों ने भुला दिया है वह दौर, जो कायम था लाइसेंस राज के समाप्त होने से पहले। नई पीढ़ी के भारतीय तो कल्पना भी शायद नहीं कर सकते उस भारत की, जिसमें तकरीबन हर भारतवासी की...
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