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कृषि, कर्ज और महंगाई की चुनौतियां

नई दिल्ली [भारत डोगरा]। जहां एक ओर कृषि नीति के सामने महंगाई व किसानों के कर्ज की ज्वलंत समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर जलवायु बदलाव के संकट से जूझना भी जरूरी है। वैसे तो पहले भी यह बार-बार अहसास हो रहा था कि न्याय, समता व पर्यावरण हितों की रक्षा और खेती में टिकाऊ प्रगति के लिए कृषि-नीति में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अब जब जलवायु बदलाव के कुछ दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं और...

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किसानों के मुफीद नहीं हैं फसल बीमा स्कीमें

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार ने मौसम आधारित फसल बीमा योजनाओं [डब्लूबीसीआईएस] को तो लागू कर दिया है, लेकिन कई खामियों की वजह से यह किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित नहीं हो पा रही हैं। राज्य सरकारों की उदासीनता भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार है। प्रमुख उद्योग चैंबर फिक्की के मुताबिक केंद्र सरकार को सबसे पहले इन स्कीमों के लिए कम से कम तीन वर्ष अवधि की रणनीति बनानी चाहिए।...

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बंजर भूमि पर किसान उपजा रहे सोना

मगध (गया/औरंगाबाद/नवादा/जहानाबाद)। कृषि क्षेत्र में भी राज्य सरकार की पहल अब रंग लाने लगी है। मगध प्रमंडल के कृषकों को बेहतर उत्पादन के गुर सिखाए जा रहे हैं। बदलते परिवेश में विशेषकर मौसम के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए फसलों के उत्पादन एवं इकाई क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किस्मों का चुनाव, समय से बोआई, नराई-गुहाई, तृण-नियंत्रण, निर्धारित समय पर उचित मात्रा में जैविक एवं रासायनिक उर्वरकों का व्यवहार, सिंचाई की उचित व्यवस्था, कीट...

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भू-जल स्रोतों के पुन: आकलन के लिए राज्यस्तरीय समिति गठित

जागरण ब्यूरो, शिमला : वर्ष 2008-09 में भू-जल स्रोतों के पुन: आकलन के लिए राज्यस्तरीय समिति का गठन किया गया है। प्रधान सचिव, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य इस समिति के अध्यक्ष होंगे। सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग के इंजीनियर-इन-चीफ, निदेशक शहरी विकास, निदेशक कृषि, समस्त मुख्य अभियंता, अधीक्षण अभियंता हाइड्रोलॉजी, अधीक्षण अभियंता जलापूर्ति एवं मल निकासी, अधीक्षण अभियंता प्लानिंग एवं डिजाइन, हिमाचल प्रदेश जल प्रबंधन बोर्ड के नामित सदस्य तथा नाबार्ड के महाप्रबंधक इस समिति के सदस्य...

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सांसद निधि फंसी है कई अजूबों और पेंच में

पटना राज्य के ज्यादातर सांसदों ने अपने कर्तव्यों की केंचुल उतार लोकहित की अपनी जिम्मेदारियां स्थानीय प्रशासन के जिम्मे छोड़ दी है। लिहाजा कहीं सांसद निधि की राशि विमुक्त न हो सकी, तो कहीं जमीन पर उसका कोई उपयोग नदारद है। लगता है कि पहले की तरह वायदों को जमीन पर उतारने की नहीं , कुछ और वायदे करते जाना, सांसदों का राजनीतिक शगल हो गया है। जनता यह खेल देखते रहने को अभिशप्त है।...

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