अर्थव्यवस्था, राजनीति और प्रकृति के नजरिये से पिछला साल काफी उथल-पुथल वाला वर्ष रहा। ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकला, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए और अनियमित मौसम व असमय बारिश से पूरी दुनिया हलकान रही; गरीबों के घर और खेत तबाह हुए। ये तमाम चीजें अब बीते दिनों की बातें भले लगती हों, लेकिन जिस तरह से हमारे लक्ष्य बदल रहे हैं, भविष्य इससे भी बुरा...
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एक नारीमय राजनीति की बुनियाद-- रुचिरा गुप्ता
चंपारण सत्याग्रह में औरतें पहली बार हिंदुस्तान की जमीनी राजनीति से जुड़ीं और यह औरतों की भागीदारी का बुनियाद बन गया. सूत कातना और खादी बुनना गरीब से गरीब महिला भी अपने घर में कर सकती थी. लाखों वॉलंटियरों, विशेषकर महिलाओं को, जो अपना घर नहीं छोड़ सकतीं थीं और पढ़ी-लिखी भी नहीं थी, अब आंदोलन भाग ले सकती थीं. इन कार्यों ने सबको बदला-शक्तिशाली और कमजोर को, मर्द को...
More »पनामा मामले के विभिन्न पेच- मोहन गुरुस्वामी
पनामा मध्य अमेरिका में स्थित एक टापू देश है, जो उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका को जोड़ता है. भौगोलिक रूप से उत्तर में इसका पड़ोसी कोस्टारिका है और दक्षिण में कोलंबिया स्थित है. यह एक छोटी जमीनी पट्टी है, जो प्रशांत और अटलांटिक महासागरों को अलग करता है. मानव-निर्मित 77 किलोमीटर लंबी नहर दोनों महासागरों को परस्पर जोड़ती है और इसमें बड़े जहाजों का आवागमन हो सकता है. वर्ष 1914 में शुरुआत...
More »खैरात बांटती राजनीति का सच -- अनुपम त्रिवेदी
अपने पिछले लेख में मैंने लोकतंत्र के दुरुपयोग और उसके बिगड़ते स्वरूप का उल्लेख किया था. यह भी जिक्र किया था कि कैसे राजनीतिक दल लोकतंत्र के नाम पर अनाचार में संलिप्त रहते हैं. उसी कड़ी में आज जिक्र एक ऐसे मुद्दे का, जिसने न केवल लोकतंत्र को कमजोर किया है, बल्कि हमारी खुद्दारी और स्वाभिमान पर भी गहरी चोट की है. बात है उस खैरात की, जिसे हर राजनीतिक...
More »आस्तियां कैसे बनीं अस्थियां!-- अनिल रघुराज
हम ऋण लेते हैं, तो वह हमारे लिए बोझ या देनदारी होता है. मशहूर कहावत भी है कि अगर हमें बैंक को 100 रुपये लौटाने हैं, तो यह हमारी समस्या है, लेकिन हमें अगर 100 करोड़ लौटाने हैं, तो यह बैंक की समस्या है. दरअसल, बैंक जब ऋण देता है, तब वह उसके लिए आस्ति होती है, क्योंकि मूलधन समेत उस पर मिला ब्याज ही उसकी कमाई का मुख्य जरिया...
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