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महामारी के बाद निवेश का पहिया, राजस्व की चरखी और रोजगारों की मशीन कैसे चलेगी

-इंडिया टूडे, ताली-थाली और दीया-मोमबत्ती से होते हुए कोविड लॉकडाउन का तीसरा सप्ताह आने तक केंद्र सरकार थकने-सी लगी थी. यही मौका था जब भारतीय संविधानसभा की वह जद्दोजेहद कारगर नजर आने लगी, जिसके तहत राज्यों को पर्याप्त शक्तियों से लैस किया गया था. आजादी के बाद सबसे बडे़ संकट में भारत के राज्य अमेरिका की तरह वहां के राष्ट्रपति का सिरदर्द नहीं बने थे बल्कि संघीय ढांचे की ताकत के...

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ट्विटर पर छाया किसानों की संपूर्ण कर्जा मुक्ति का अभियान, लॉकडाउन में राहत की मांग

-आउटलुक,  देश कोरोना वायरस जैसी गंभीर महामारी से लड़ रहा है तथा इस लड़ाई में देश का किसान अग्रिम मोर्चे पर खड़ा है क्योंकि उन्हीं की बदौलत देश में खाद्यान्न का भरपूर भंडार है जिस कारण केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें आम आदमी को खाद्यान्न मुफ्त या फिर सस्ती दर पर आवंटन कर पा रही हैं। अत: देशभर कि किसानों ने ट्विटर के माध्यम से अपनी बात सरकार तक पहुंचाने...

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जल संकट से बढ़ेगा कृषि संकट

-इंडिया वाटर पोर्टल,  प्रांरभ से ही भारत में खेती की जा रही है। भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि ही है, जहां 51 प्रतिशत भाग पर कृषि,  4 फीसद पर चारागाह, 21 फीसदी पर वन और 24 बंजर भूमि है। देश के 52 प्रतिशत भाग की आजीविका कृषि और इससे संबंधित उद्योगों व कार्यों पर निर्भर है। चीन के बाद भारत गेंहू और...

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एमपी/हरियाणा: मंडी में 80 कुंतल सरसों लेकर पहुंचे किसान से 32 किलो लेकर वापस लौटाया, कर्ज वसूली पर छूट फिर भी काट रहे पैसे

-गांव कनेक्शन, फोन पर जैसे ही मैसेज आया कि आप अपनी फसल लेकर मंडी आ जाइये, बहादुर सिंह खुश हो गये। फटाफट गांव से मजदूरों को बुलाया और ट्रैक्टर पर 25 कुंतल सरसों लेकर मंडी पहुंच गये, लेकिन खुशी तब निराशा में बदल गई जब मंडी में उनसे केवल 64 किलो सरसों ही खरीदा गया। देश की कई प्रदेश सरकारों ने लॉकडाउन में छूट देते हुए गेहूं और सरसों की सरकारी खरीद...

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संकटों को अवसर बना लेने वाले मुल्क अपनी अगली पीढ़ियों को एक तपी-निखरी दुनिया सौंपते हैं

-इंडिया टूडे, बीसवीं सदी की महामंदी, 1991 के भारतीय आर्थिक संकट और 2008 की ग्लोबल बैंकिंग आपदा का इतिहास हमें कुरेद-कुरेद कर बताता है कि अंतत: वही जीतते हैं जो एक अच्छी आपदा को बर्बाद नहीं करते. संकटों को अवसर बना लेने वाले मुल्क अपनी अगली पीढि़यों को एक तपी-निखरी दुनिया सौंपते हैं. बड़े बदलाव के लिए किसी बड़े संकट का इंतजार था तो मुराद अब पूरी हो गई है. संकट में...

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