कृषक जातियों में बेचैनी तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि खेती-किसानी अब मुनाफे का काम नहीं रही। उनके बच्चों के पास तकनीकी तालीम भी नहीं है, जिससे वे नए जमाने की नौकरियां पा सकें। ऐसे में राजनीतिक दांव-पेच उन्हें और अधीर कर रहे हैं। जाति-युद्ध की तरफ बढ़ती आग को रोकने के लिए फौरन कदम उठाए जाने चाहिए। हाल के घटनाक्रमों पर पेश है वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का विश्लेषण पिछले...
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सूखा और जल संसाधन प्रबंध-- बिभाष
महाराष्ट्र फिर सूखे के चपेट में है. बुंदेलखंड पहले से ही समाचारों में बना हुआ है. खेती और किसानों को लेकर रोज बुरी खबरें आ रही हैं. महाराष्ट्र में पानी की कमी का लगातार तीसरा साल है. बुंदेलखंड में भी सूखे का चौथा साल चल रहा है. खेती बुरी तरह से संकट में है. दरअसल, पूरा मामला जल और भूमि के कुप्रबंध का है. देश में हर साल कहीं...
More »पहचान का संकट 99 प्रतिशत समाप्त
मानव की पहचान स्थापित करना बड़ा विचार है। इससे न सिर्फ व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर पर कई समस्याएं सुलझीं बल्कि लंबे अरसे से समस्या बनी सभ्यतागत पहेलियां भी सुलझीं। साधारण शारीरिक चिह्नों से शुरू हुआ यह सफर फिंगरप्रिंट, आंखों की पुतलियों से होता हुआ डीएनए और डिजिटल पहचान तक पहुंचा है। पिछले कुछ दशकों में कंप्यूटर प्रोसेसिंग में तरक्की की बदौलत हमारी पहचान स्थापित करने के लिए ऑटोमेटेड बायोमेट्रिक सिस्टम आए...
More »महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा की स्मृतियों को सहेजने की पहल
पटना : नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन के समर्थन में 1917 में महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा के शताब्दी वर्ष पर उनके यात्रा मार्ग से जुड़ी स्मृतियों को सहेजने और नई पीढ़ी से रूबरू कराने के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े वयोवृद्ध सेनानियों के संस्मरण को संकलित करने की पहल की गयी है. महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा और सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष के अवसर पर...
More »5 साल में किसानों की आमदनी दुगुना, विकास का कसीनो मॉडल तो नहीं
बजट 2016 में केंद्र सरकार ने गांव और किसानों को तवज्जो दी गयी है इसके विषय में कई बाते कहीं जा रही है। कोई इसे ग्राम देवता का बजट बता रहा है तो कोई किसान देवता का। लेकिन विशेषज्ञ सरकार के गांवो में प्रति समर्पित बजट के सवाल पर बंटे हुए हैं। योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजित सेन कहते हैं कि वित्त मंत्री अरूण जेटली को अपने बजट मे...
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