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रोटी इंटरनेट से, पानी शेयर बाज़ार से

-न्यूजलॉन्ड्री, इस सप्ताह अमेरिकी स्टॉक बाज़ार में पानी की संभावित क़ीमतों पर बोली लगने की शुरुआत हो गयी है. यह इतिहास में पहली दफ़ा हो रहा है और इसी के साथ पानी भी सोने-चांदी, तेल, अनाज जैसी चीज़ों की क़तार में आ गया है, जिसकी क़ीमत अब वॉल स्ट्रीट पर तय होगी. दो साल पहले कैलिफ़ोर्निया में बने पानी का दाम तय करने वाले एक सूचकांक- नैसडैक़ वेलेस कैलिफ़ोर्निया वाटर इंडेक्स-...

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स्टेट ऑफ रूरल एंड एग्रेरियन इंडिया रिपोर्ट 2020 का हुआ विमोचन

-प्रेस नोट, नेटवर्क ऑफ रूरल एंड एग्ररिेरियन स्टडीज (NRAS) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन वेबीनार में आज भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के निदेशक डॉ वी रामगोपाल राव द्वारा "स्टेट ऑफ रूरल एंड एग्रेरियन इंडिया रिपोर्ट 2020" (‘भारत मेंखेती और गाँव-देहात का हाल 2020) का विमोचन किया गया। यह रिपोर्ट NRAS द्वारा तैयार की गयी है, जो वर्ष 2010 में स्थापित किया गया ग्रामीण और कृषि भारत के मुद्दुों से जुड़े अध्यतेओं, शोधकर्ताओ, किसानों,...

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वादा 50 सौर चरखा परियोजनाओं का लेकिन मई 2019 से बंद है पायलट प्रोजेक्ट

-कारवां, दक्षिण बिहार के नवादा जिले के खानवन गांव की 45 वर्षीय साधना देवी के लिए 31 जनवरी 2016 का दिन खुशियों भरा था. असल में उस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चर्चित रेडियो शो मन की बात में उनका जिक्र किया था. साधना ने जनवरी में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख गांव में सोलर या सौर चरखा केंद्र खोलने पर मोदी की प्रशंसा की थी और आभार व्यक्त किया...

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भारत और भारतीयों की ज़िंदगी में क्या चल रहा, ये बिहार के चुनाव नहीं बताते

-द प्रिंट, पिछली बार दिप्रिंट हिन्दी के अपने इस स्तंभ में मैंने लिखा था कि बिहार विधानसभा के चुनाव को लेकर मेरे मन में क्यों उत्साह की कोई लहर नहीं उठ रही. मेरे लिखे पर पहली प्रतिक्रिया दिप्रिंट की ओपिनियन एडिटर रमा लक्ष्मी की आई. उन्होंने मुझे चिट्ठी में लिखा: एक सेफेलॉजिस्ट के रूप में आपके लिए ये सब लिखना बहुत तकलीफदेह रहा होगा. ये बहुत कुछ वैसा ही है जैसे...

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महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता...

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