देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. सरकार ने इससे निबटने के उपाय के रूप में अपने खर्चो में कटौती का एलान किया है. इसमें कहा गया है कि अगले एक साल तक केंद्र सरकार कोई नयी नियुक्ति नहीं करेगी. यानी एक तरफ रोजगार छिन रहे हैं, दूसरी ओर रोजगार के नये अवसरों पर भी फिलहाल विराम लग गया है. ।।सेंट्रल डेस्क।। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. यह समय...
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शिक्षा केंद्र, बुद्धिजीवी और सत्ता- आनंद कुमार
जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...
More »सिंचाई के बगैर लहलहाएंगी बंपर पैदावार वाली फसलें
सेंट लुईस, [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। आधुनिक तकनीकी के बल पर दुनिया के ज्यादातर देशों ने नई हरित क्रांति का बिगुल फूंक दिया है। कृषि वैज्ञानिकों की मौन लड़ाई खेती पर आने वाली आपदाओं को जीत रही है। नतीजतन, बिना सिंचाई के ही कीटमुक्त पौधों के जरिये फसलों की उत्पादकता को कई गुना तक बढ़ाना संभव हो गया है। भारत जैसे देश की खेती के लिए बायो टेक्नोलॉजी बेहद मुफीद...
More »सिर्फ पढ़ा देना शिक्षक का काम नहीं- प्रो. यशपाल
बात जब पहले और अब की शिक्षा और शिक्षक में तुलना की आती है, तो उसे अच्छे-बुरे में नहीं आंका जा सकता. आज के शिक्षक भी अच्छे हैं, अपना काम कर रहे हैं. हालांकि सभी को अच्छा या खराब कहना सही नहीं होगा. पहले के शिक्षक भी कुछ बहुत अच्छे होते थे, तो कुछ नहीं. यह जरूर था कि पहले के शिक्षकों के पास विद्यार्थियों को पीटने का अधिकार हुआ करता...
More »कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश
वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...
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