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तिरछी नज़र: आत्मनिर्भर भारत के सबक़

-न्यूजक्लिक, देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘सरकार जी’, जब से वे सरकार जी बने हैं, तब से ही बहुत कोशिश कर रहे हैं। सरकार जी देश को अपने ऊपर निर्भर बनाने की यथा संभव कोशिश कर रहे हैं। जब कभी भी कोई बात उठती है तो प्रश्न यही उठाया जाता है कि वे नहीं तो और कौन। अर्थात देश उन्हीं पर निर्भर है। सरकार जी और उनके सारे समर्थकों की...

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जिस कंपनीराज के खिलाफ हमारे पुरखे लड़े थे, वही मोदी सरकार देश पर फिर थोपना चाहती है!

-जनपथ, कल 26 मई को किसान आंदोलन के 6 माह पूरे होने के अवसर पर संयुक्त किसान मोर्चा की अपील पर विरोध दिवस (काला दिवस) मनाया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश के हर किसान तक आंदोलन के मुद्दों को पंहुचाने के लिए 21 मई से 26 मई तक फेसबुक लाइव किया जा रहा है। फेसबुक लाइव के आज पांचवें दिन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य...

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'वोकल फॉर लोकल' का बेहतरीन उदाहरण है नीलगिरी में बसा यह 'टी स्टूडियो', जिसे स्थानीय महिलाएं ही करती हैं संचालित

-गांव कनेक्शन, नीलगिरी की चाय के बारे में लिखना थोड़ा मुश्किल है। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि घुमावदार पहाड़ियों में ये चाय के बागान कैैसे दिखते हैं। हरियाली से ढंके इस इलाक़े में लाल रंग की एक छोटी सी बिल्डिंग बरबस अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। लाल रंग की ये बिल्डिंग मुस्कान खन्ना का आकर्षक टी स्टूडियो है, जो तमिलनाडु के नीलगिरी में कट्टाबेट्टू के एक छोटे से गांव...

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ग्रामीण भारत में बढ़ता कोरोना : डॉक्टरों की कमी, झोलाछाप पर भरोसा और वैक्सीन के लिए झिझक

-गांव कनेक्शन, भारत की 65 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जबकि सिर्फ 33 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाएं ही उन्हें मिल रही हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा तीन स्तर पर काम करता है, जिसमें एक उप-केंद्र, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3,000 से अधिक डॉक्टरों की कमी है, जो पिछले 10 सालों...

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दूसरी लहर ग्रामीण जीवन पर कहर बरपा रही है, क्या यह ग्रामीण आजीविका को भी प्रभावित करेगी?

इस साल मार्च के बाद से हर रोज कोविड-19 के नए मामलों और मौतों में वृद्धि होने के बाद मीडिया ने रिपोर्ट (कृपया यहां और यहां क्लिक करें) किया कि प्रवासी कामगार अपने प्रवास स्थलों से मूल स्थानों (यानी मूल स्थानों) पर वापस लौट रहे हैं. शहरों और बड़े औद्योगिक कस्बों में जहां समाज के हाशिए के वर्गों से अनौपचारिक और कम कुशल श्रमिक मौसमी रूप से प्रवास करते हैं,...

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