क्या इस देश को एक नए नारे की जरूरत है? मेरे हिसाब से यह नारा इस तरह हो सकता है-एक विवेकशील भारत। डिजिटल इंडिया और इनोवेटिव इंडिया जैसे नारे तो देश को प्रेरित करते ही रहेंगे, लेकिन इसके समानांतर देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी अनदेखी करना बहुत खतरनाक होगा। एक तरफ तो हम लगातार आधुनिकता, विज्ञान और वैश्वीकरण की बातें करते हैं। दूसरी ओर, हमारी जनसंख्या का...
More »SEARCH RESULT
प्राइवेसी के प्रश्न पर अटका ‘आधार--’ विराग गुप्ता
सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त को पारित आदेश से आधार को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अनिवार्य बनाने से इनकार कर दिया है। केंद्र द्वारा 1954 के पुराने निर्णय पर जोर देने से निजता के अधिकार की व्यापक समीक्षा के लिए मामले को नौ न्यायाधीशों की संविधान खंडपीठ को भेजने का निर्णय भी आया। इसके पूर्व 24 मार्च 2014 के एक अन्य आदेश से सर्वोच्च न्यायालय ने आधार...
More »सफाई कर्मचारियों की भी सुनिए- सुभाषिनी अली सहगल
वर्ष 1958 से 31 जुलाई हमारे देश में 'अखिल भारतीय सफाई मजदूर दिवस' के रूप में मनाया जाता है। समाज के दूसरे हिस्से इन कार्यक्रमों से बहुत दूर और पूरी तरह अनभिज्ञ रहते हैं। 22 जुलाई, 1957 को दिल्ली के सफाई कर्मचारियों ने अपना मांग पत्र दिल्ली की नगरमहापालिका के सामने पेश किया था। उसके साथ एक हफ्ते बाद शुरू होने वाली हड़ताल का नोटिस भी संलग्न था। चूंकि मामला...
More »फंदे में फांसी- विशेष प्रस्तुति(प्रभात खबर)
फांसी की सजा को खत्म करने पर एक बहस दुनियाभर में सालों से चल रही है. भारत में भी मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी दिये जाने से पहले 291 प्रतिष्ठित लोगों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख कर फांसी रोकने की मांग की थी. भारत उन देशों में शामिल है, जहां फांसी की सजा पर अमल नहीं के बराबर हो रहा है. हालांकि जघन्यतम अपराध के दोषियों में...
More »क्यों झूठे हैं मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए दिए जा रहे चारों तर्क-- कल्पेश याग्निक
‘जो कुछ भी गोपनीय रखा जाता है, पूरी तरह बताया और समझाया नहीं जाता, अनेक प्रश्न अनुत्तरित रखकर किया जाता है; वह बाद में सड़ने लगता है। चाहे इस तरह किया गया न्याय ही क्यों न हो। - पुरानी कहावत मृत्युदंड दिया जाना चाहिए कि नहीं? प्रभावी और मेधावी लब्धप्रतिष्ठितों की स्पष्ट राय है - नहीं? उनके चार तर्क हैं : 1. क्योंकि यह तो ‘आंख के बदले अांख' का विकृत कानून हो...
More »