महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्म-बोध, ज्ञान-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है। भारतीय जन-मानस की...
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घर में भी नहीं, तो कहां सुरक्षित हैं बेटियां - सभाषिनी सहगल अली
बदायूं का नाम वर्षों तक एक भयानक तस्वीर के साथ जुड़ा रहेगा-एक पेड़ की डाल पर टंगी दो लड़कियों की लाश। पिछड़े वर्ग की दो चचेरी बहनों के साथ हुए बलात्कार और हत्या के आरोपी ही नहीं, लड़कियों के घरवाले की मदद से इन्कार करने वाले पुलिसकर्मी भी उसी जाति के थे, जिस जाति के प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। क्या इसलिए उन्हें किसी का डर नहीं था? काफी हंगामे के बाद...
More »लोक से कटा गंगा-विमर्श -- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 15 अक्तूबर, 2014: गंगा के बारे में जो धारणा भारतीय जन-मानस के बड़े हिस्से में सचेतन रूप से खड़ी की गई है, वह केवल धार्मिकता से जुड़ी है। वह धार्मिकता भी बेहद एकांगी है। इस पूरी धारणा ने मानवीय जीवन और खास तौर से समाज की सामूहिक चेतना को बुरी तरह से खंडित किया है। इसने प्रकृति के साथ जीवन के रिश्तों को समझने और उसे समृद्ध करने की...
More »किशोर न्याय की हो संवेदनशील परख - प्रमोद भार्गव
केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट संशोधन विधेयक के जरिए अब किशोर अपराधियों की वयस्क होने की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 कर दी गई है। यानी अब उन पर जघन्य अपराधों के मामले में वयस्क अपराधियों की तरह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज होगा। लेकिन मुकदमा चलाने का अंतिम फैसला किशोर न्याय मंडल ही (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) लेगा। हालांकि इसके...
More »जुर्म का गढ़ बनता जा रहा है यूपी- फरजंद अहमद
राजनीति की केमिस्ट्री की एक खासियत है कि जो चीज जितनी तेजी से बदलती है, वह उतनी ही तेजी से अपने मूल की ओर लौट भी जाती है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में लगातार सांप्रदायिक दंगों और फिर रेप जैसी शर्मनाक घटनाओं पर हो रहे हंगामे में अखिलेश यादव सरकार उलझ गई है। इसकी वजह भी है। हर घटना इसी बात की ओर इशारा करती है कि देश का सबसे बड़ा...
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