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कहां है सुधारों की अगली खेप-- रामचंद्र गुहा

सन 2009 के आम चुनाव के ठीक बाद मैंने बेंगलुरु में एक भाषण सुना, जो नई सरकार के लिए नीतियों के नए रोडमैप पर था। वक्ता थे राकेश मोहन, जो उद्योग व वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ पदों पर रह चुके थे और उस वक्त रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे। राकेश मोहन का कहना था कि आर्थिक सुधारों की पहली लहर ने व्यापार को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकाला और...

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शहरों में बढ़ेगा बढ़ती आबादी का बोझ- ज्ञानेन्द्र रावत

दुनिया की आबादी सात अरब को पार कर चुकी है। इसमें हर साल आठ से नौ करोड़ की वृद्धि चिंतनीय है। संयुक्त राष्ट्र की मानें, तो भविष्य में भारत को मिलाकर कुछ बड़े अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देश वैश्विक आबादी तेजी से बढ़ाएंगे। भारत सबसे बड़ी आबादी वाला दुनिया का दूसरा देश है। आने वाले 10-12 वर्षों में भारत चीन से आगे निकल जाएगा। आशंका है, 2060 में भारत की...

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दुनिया में घट रही है गरीबी- सोमिनी सेनगुप्ता

भयावह गरीबी में दुनिया भर में तेज गिरावट तो आई ही है, अब लड़कों के साथ-साथ बहुत-सी लड़कियां भी विश्व के तमाम प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रही हैं। वहीं मच्छरदानी लगाने जैसे साधारण-से उपायों से करीब साठ लाख लोगों को मलेरिया से होनेवाली मौत से बचाया गया है। लेकिन करीब एक अरब लोग अब भी खुले में शौच करते हैं, जो कई अन्य लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में...

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सबकी पहुंच में हो बिजली- वरुण गांधी

भारत में तकरीबन साढ़े सात करोड़ परिवार ऐसे हैं, जिनके घरों��� में बिजली नहीं है। बिजली के उत्पादन के लिए हम कोयले का आयात करते हैं। हम पूरे देश में बिजली का पारेषण करते हैं, जिसमें समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक हानि के तौर पर 25 फीसदी बिजली का नुकसान उठाना पड़ता है। जहां तक बिजली के दाम के सवाल है, तो यह जिन दामों पर बेची जाती है, वे बाजार...

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उपलब्धियों से अधिक चुनौती -- अजय बोस

केंद्र की सत्ता में एक साल पूरे होने के अवसर पर भाजपा चाहे कितना भी जश्न क्यों न मनाए, वास्तविकता यह है कि उसकी परेशानी छिपाए नहीं छिप रही। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कॉरपोरेट हितैषी की रही है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी यह छवि कमोबेश खंडित होती दिखाई देती है। पिछले दिनों खत्म हुए बजट सत्र में उनकी कोशिशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ,...

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