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नि:शक्तों को समान अवसर का है अधिकार- आर के नीरद

नि:शक्तों को वह सब अधिकार मिला हुआ है, जो एक सामान्य व्यक्ति को है. नि:शक्तता के आधार पर उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता, बल्कि एक सामान्य व्यक्ति के मुकाबले उसकी शारीरिक या मानसिक कमी की भरपाई के लिए उसके साथ विशेष व्यवहार किया जाना है. शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्ति के मामले में समाज का नजरिया बदला भी है, लेकिन मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के प्रति अब...

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नए प्रधानमंत्री से उम्मीदें- नीलांजन मुखोपाध्याय

उम्र में मेरे ताऊ जी के बेटे मुझसे कुछ साल बड़े हैं और अमेरिका में रहते हैं। छुट्टियों और पारिवारिक समारोहों के अलावा वह कभी यहां नहीं आते, क्योंकि वह अमेरिकी सपनों में जीने वाले व्यक्ति हैं। हम दोनों लगातार संपर्क में रहते हैं, बेशक कई मुद्दों पर हम एकमत नहीं हैं। कुछ दिनों पहले मेरे पास उनका एक ई-मेल आया। भारत के चुनावी नतीजे पर वह गद्गद थे। उन्होंने लिखा,...

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जिनको हाशिए पर भी जगह नहीं- अतुल चौरसिया

हिसार के पश्चिमी छोर पर स्थित एक विशाल फॉर्महाउस विरोधाभासों की जमीन है. इसके आधे हिस्से में एक शानदार कोठी, लॉन और पोर्टिको बने हैं जबकि बाकी का आधा हिस्सा बेतरतीब काली पॉलीथीन से ढंकी करीब 60-70 झुग्गियों से पटा हुआ है. जहां-तहां पानी के गड्ढे हैं जिनमें मच्छर और मक्खियां बहुतायत में पल-बढ़ रहे हैं. इसी झुग्गी बस्ती में अपनी कुछ मुर्गियों और दो सुअरों के साथ 80 साल...

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परिवर्तन के लिए पूर्वाभ्यास- प्रभु जोशी

जनसत्ता 23 मई, 2014 : इन चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया कि नरेंद्र मोदी अपने दल से बड़े हैं। वे मालवा की इस कहावत के चरितार्थ हैं कि‘दस हाथ की कंकड़ी में बीस हाथ का बीज’। उनके ऐसा ‘वैराट्य’ ग्रहण करते ही उनका दल छिलके की तरह नीचे गिर गया है। वे स्वयंसिद्ध सत्ता की उस धार में बदल चुके हैं, जिसे अब दल की पुरानी आडवाणी-अटल छाप म्यान...

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हरप्रीत कौर की अजब कहानी- राहुल कोटियाल

साल 2013. दिल्ली में इस साल की शुरुआत धरनों, प्रदर्शनों, भूख हड़ताल और नारों से हुई थी. 16 दिसंबर 2012 की शाम जो हादसा निर्भया के साथ हुआ उसने दिल्ली ही नहीं पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इसके बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे. कहीं निर्भया को न्याय दिलाने की मांग थी तो कहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए कानून बनाने के आंदोलन हो...

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