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गुजरात के विकास का सच- नीलांजन मुखोपाध्याय

चुनावी सरगर्मियों के बीच गुजरात में यह देखना दिलचस्प होगा कि वहां सामाजिक समावेश की दिशा में सरकार ने अब तक कौन-से कदम उठाए हैं। हाल के तमाम साक्षात्कारों में नरेंद्र मोदी यह दावा करते आए हैं कि वह अपने नागरिकों के साथ समान व्यवहार करेंगे। मगर गोधरा शहर से थोड़ी दूर रहने वाली तीन मुस्लिम लड़कियों की कहानी गुजरात सरकार के दावे से ठीक उलट है, जो इस चुनाव...

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मजदूरों के हित में कई कानून

मित्रों, मई दिवस दुनिया भर में मजदूर दिवस के रूप मे मनाया जाता है. अपने देश में भी उस दिन मजदूर दिवस मनाया जाता है और मजदूरों के हितों से जुड़े विषयों पर हर स्तर पर बहस होती है. इस बहस के नतीजे भी आते रहे हैं. मालिक और मजदूर तथा काम लेना वाला और काम करने वाला यह दो वर्ग इस बहस का मुद्दा होता है. अगर उद्योगपतियों को छोड़...

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अंबेडकर और संघ परिवार- एम के वेणु

लोकसभा चुनाव के बीच संघ परिवार ने चतुराई से यह बहस छेड़ने की कोशिश की है कि दलितों के आदर्श और भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव अंबेडकर मुसलमानों पर भरोसा नहीं करते थे। अचानक ऐसे बयान आने लगे और टीवी चैनलों पर बहस होने लगी कि वह मुसलमानों के प्रति नकारात्मक सोच रखते थे। एक बेनाम ट्वीटर एकाउंट के जरिये, जो संभवतः भाजपा की ओर से तैयार किया गया है, इस लेखक...

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खेती-किसानी के मुद्दे गायब हैं चुनाव से- महक सिंह

चुनाव के दौरान सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और व्यक्तिवाद की बातें की जा रही हैं, पर गांव, खेती और 54 प्रतिशत जनता के मुद्दे गौण हैं। कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), पूंजी निर्माण और कृषि निर्यात लगातार घटते जा रहे हैं। 1950-51 में जीडीपी में कृषि की भागीदारी 53.1 प्रतिशत थी, जो 2012-13 में घटकर 13.7 प्रतिशत रह गई। गांव-शहर तथा किसान-गैर किसान के बीच खाई बढ़ती जा रही है।...

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कहां खो जाते हैं महिलाओं के मुद्दे - रंजना कुमारी

मैं दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अपने एक गांव में वोट डालने गई थी। वहां अब भी बहुत ज्यादा विकास नहीं हुआ है। मगर एक अच्छी बात जरूर दिखी कि घरों से महिलाएं वोट डालने के लिए अकेली निकल रही थीं। पहले ज्यादातर वे परिवार की भीड़ का हिस्सा बनकर पोलिंग बूथों तक पहुंचती थीं, लेकिन इस बार वे अपने बच्चे का हाथ थामकर मतदान की कतारों में खड़ी थीं।...

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