हम सारी बातों पर बहस नहीं करते. बहस का विषय वही बातें बनती हैं, जिन्हें महत्वपूर्ण मान कर समाचार के रूप में परोस दिया गया हो. एक समय में एक ही जगह अनेक घटनाएं हो रही होती हैं और वे समान रूप से महत्वपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन सबके भाग्य में समाचार होना नहीं लिखा रहता. जो घटनाएं समाचार बनने से रह जाती हैं, वे हमारी चिंता के दायरे से भी...
More »SEARCH RESULT
सूखे से निपटने के लिए राज्य सरकार की अब तक प्लानिंग नहीं
भोलाराम सिन्हा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में अल्पवर्षा व अवर्षा के कारण सूखे की स्थिति निर्मित हो रही है। राज्य सरकार ने प्रदेश की 150 में से 93 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित करने का भी निर्णय ले लिया है। अब इन सूखाग्रस्त इलाकों में पेयजल, रोजगार, जीवनरक्षक दवाइयां, पशुचारा, पशु टीकाकरण, पोषण आहार, खाद्य सुरक्षा, कृषि अनुदान, खरीफ व रबी फसलों को बचाने की चुनौती है। सूखे की स्थिति से निपटने के...
More »औरतों की अहमियत
बांग्लादेश की इकोनॉमी में औरतों की हिस्सेदारी 34 फीसदी है। विश्व बैंक की एक ताजा छपी रिपोर्ट 'औरत, कारोबार और कानून' के मुताबिक, बांग्लादेश सालाना छह फीसदी की अपनी मौजूदा जीडीपी की तरक्की में 1.8 फीसदी और जोड़ सकता है। अपने तजुर्बे के आधार पर हम इस तथ्य की पुरजोर वकालत करते हैं, क्योंकि अस्सी के दशक ने हमने दिखाया है कि कैसे औरतों की अगुवाई में मुल्क में रेडीमेड...
More »किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार
जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
More »किसानों की आत्महत्या के आंकड़े कैसे कम हुए? पी साईनाथ
महज आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1995 से 2014 के बीच किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा तीन लाख पार कर चुका है. लेकिन साल 2014 के आंकड़ों को पिछले 19 साल के आंकड़े के साथ मिलाकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने किसानों की आत्महत्या की गिनती के तरीक़े में बदलाव किया है. ये नए तरीक़े का असर है कि 2014 में किसानों की आत्महत्या...
More »