सरकार ने राज्य के अधिकतर जिलों को सुखाड़ घोषित कर दिया. स्थिति भी सुखाड़ वाली है, लेकिन किसानों को क्या मिला. अभी केंद्रीय टीम आयेगी, जायजा लिया जायेगा, उसके बाद जो मिलना होगा, मिलेगा. लेकिन अभी तो किसान भूखे मर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर से सभी झंझावतों से लड़ते हुए यदि किसान फसल उपजाने में सफल रहे रहे, तो उसका उचित कीमत नहीं मिलेगा. अभी सरकार को किसानों के उत्पाद को लेने...
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भूख के खिलाफ जंग में अब भी पीछे भारत- अरविन्द मोहन
कायदे से जिस साल भारत में खाद्य सुरक्षा कानून बना है और भोजन के हक पर व्यापक चर्चा हुई, उसमें तो संयुक्त राष्ट्र के संगठन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) द्वारा जारी नये हंगर इनडेक्स की भी खूब चर्चा होनी चाहिए थी, पर ऐसा नहीं हुआ. कुछेक अखबारों में थोड़ी विस्तृत और बाकी में हल्के-फुल्के ढंग से खबर छप कर बात समाप्त हो गयी. कुछ लोग इस बात से संतुष्ट दिखे कि...
More »नमक सेजुड़े नए सवाल- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 11 अक्तूबर, 2013 : कई गंभीर घटनाएं हो रही हैं, लेकिन लोगों का मानस इस तरह का बना दिया गया है कि वे किसी विषय के इतिहास को लेकर तो बोलते हैं, उसके मौजूदा हालात पर कुछ सुनने को तैयार नहीं होते। कई बार लगता है कि सुनने की शारीरिक प्रक्रिया को भी एक खास तरह के ढांचे में ढाल देने में बाजारवादी विचारों को कामयाबी मिली है। तात्कालिक संदर्भ...
More »छत्तीसगढ़ में हरियाणा- प्रियंका कौशल
छत्तीसगढ़ में हजारों एकड़ जमीन खरीदने वाले हरियाणा के किसान आधुनिक तकनीक से खेती के जरिए एक नई मिसाल कायम कर चुके हैं. लेकिन स्थानीय किसान और सरकार इस बदलाव में कुछ खतरनाक संकेत देख रहे हैं. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. सैकड़ों एकड़ में फैले फार्म हाउस और हुक्का पीते किसान. बस खेतों में काम करते आदिवासी न दिखें तो छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों को देखकर एकबारगी यही लगता है कि...
More »लखीमपुर: महिला तस्करी की नई राजधानी- प्रियंका दुबे
रह्मपुत्र और सुबनसिरी जैसी विशाल नदियों के बीच बसा असम का लखीमपुर जिला पहली नजर में खुशहाल इलाका दिखता है. ढलानों पर पसरे चाय-बागान, दूर तक फैले धान के खेत और पानी से लबालब सैकड़ों तालाब. लेकिन सतह को थोड़ा ही कुरेदने पर इस खुशनुमा तस्वीर के पीछे की भयावह सच्चाई दिखती है. पता चलता है कि बागानों में चाय की पत्तियां तोड़ते मजदूरों और पानी में डूबे खेतों में...
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