वैश्विक लैंगिक असमानता को अगर एक पैमाने पर बैठाकर देखें तो उसमें भारत की कहानी कुछ मामलों में चमकदार मगर ज्यादातर मामलों में बदरंग नजर आएगी। पहले चमकदार पहलू को लें। साल १९९३ में संविधान का ७३ वां(पंचायत) संशोधन पारित हुआ और इस संविधान संशोधन से तृणमूल स्तर की दस लाख महिलाएं आनन फानन में राजनीतित मशीनरी का हिस्सा बन गईं। कहानी का एक चमकदार पहलू जुड़ता है नेतृत्व के...
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ग्लोबल वार्मिंग की एक रिपोर्ट पर विचारों का महाभारत
यूएनएफपीए की एक रिपोर्ट द स्टेट ऑव वर्ल्ड पॉपुलेशन 2009 के जारी होने के साथ ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर विचारों की टकराहट अपने चरम पर जा पहुंची है(रिपोर्ट की लिंक नीचे दी गई है) केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस रिपोर्ट को नई दिल्ली में जारी किया। वे इस बात से सहमत दिखे कि जलवायु परिवर्तन का बोझ महिलाओं पर पुरूषों की तुलना में कहीं ज्यादा पड़ेगा...
More »आरटीआई में बदलाव के विरूद्ध प्रदर्शन
सूचना के अधिकार अधिनियम में सरकार द्वारा बदलाव की आशंका के मद्देनजर कई नागरिक संगठन इसके विरोध में एकजुट हो रहे हैं ताकि इस ऐतिहासिक अधिनियम को नखदंत विहीन करने की कोशिशों को नाकामयाब किया जा सके। नेशनल काऊंसिल फॉर पीपल्स राईटस् टू इन्फॉरमेशन(एनसीपीआरआई) की अगुवाई में नागरिक संगठन 14 नवंबर को दिन में 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक जंतर-मंतर(दिल्ली) पर विरोध प्रदर्शन किया। एनसीपीआरआई ने सूचना...
More »भुखमरी और कुपोषण के हालात बयान करते दो और रिपोर्ट
दो जून भर पेट भोजन ना जुटा पाने वालों की तादाद दुनिया में इस साल एक अरब २० लाख तक पहुंच गई है और ऐसा हुआ है विश्वव्यापी आर्थिक मंदी और वित्तीय संकट(२००७-०८) के साथ-साथ साल २००७-०८ में व्यापे आहार और ईंधन के विश्वव्यापी संकट के मिले जुले प्रभावों के कारण। यह खुलासा किया है संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की हालिया रिपोर्ट ने । द...
More »नरेगा- बदले बदले से सरकार नजर आते हैं..
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पक्का भरोसा है कि नरेगा के आगे इस साल का सूखा पानी भरता नजर आएगा लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाले बहुत से कार्यकर्ता नरेगा की कामयाबी को लेकर अब आशंकित हो उठे हैं, खासकर नरेगा के प्रावधानों में हालिया फेरबदल के बाद। इधर सूखे ने कुल २४६ जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है उधर बहस इस बात पर सरगर्म हो रही है...
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