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'लिकेज रोकने में पंचायतों की हो सकती है अहम भूमिका' - डा. हरिश्वर दयाल

अर्थशास्त्री व श्रमिक अर्थव्यवस्था के जानकार डॉ हरिश्वर दयाल गांव के लिये शुरू किये गये कार्यक्रमों-योजनाओं के समुचित लाभ नहीं मिलने के लिए लिकेज को जिम्मेवार मानते हैं. उनका मानना है कि इसे दुरुस्त कर इसके लाभ को और प्रभावशाली बना सकते हैं. नौकरशाही की अस्थिरता को भी विकास के लिए नुकसानदायक मानते हैं. वे मानते हैं कि सामाजिक योजनाओं ने गांव के लोगों को आवाज दी है और जिसकी आवाज जितनी तेज होगी, उसे उतना पहले हक...

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कृषि वसंत से देश में दूसरी हरित क्रांति : राष्ट्रपति

नागपुर. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को यहां कहा कि कृषि वसंत से देश में दूसरी हरित क्रांति की शुरूआत होगी। उन्होंने देश की सकल घरेलू विकास दर बढ़ाने के लिए कृषि व उद्योग सेक्टर को मिलकर काम करने का आह्वान भी किया। वे यहां राष्ट्रीय कृषि प्रदर्शनी ‘कृषि वसंत’ के शुभारंभ अवसर पर बोल रहे थे। वर्धा मार्ग पर केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र परिसर में आयोजित राष्ट्रीय कृषि प्रदर्शनी ‘कृषि वसंत’ का...

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खाद्य सब्सिडी का अंकगणित - अमित तिवारी

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल का बड़ा अहम फैसला  संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में बड़ा फैसला करते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पास कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। कड़ी जद्दोजहद के बाद आखिरकार विधेयक पास भी हो गया। लेकिन इसी के साथ आर्थिक संकट से जूझ रहे राजकोष पर पडऩे वाले...

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मध्यप्रदेश का बासमती अब विदेश में भी महकेगा

भोपाल : मध्यप्रदेश में पैदा होने वाला बासमती चावल अब विदेश में भी महक सकेगा. सरकार ने मध्य प्रदेश को विदेशों में चावल निर्यात करने की मंजूरी दे दी है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार उत्पाद की भौगोलिक सीमा तय करने वाली राष्ट्रीय संस्था जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन (जीआईआर) ने कृषि उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के मध्यप्रदेश को बासमती उत्पादन करने वाले राज्यों से अलग रखने संबंधी आदेश को खारिज करने के साथ...

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आदिवासी विमर्श का दायरा- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 25 नवंबर, 2013 : बढ़ता कृषक असंतोष, छिटपुट विस्फोटों से प्रकट हो रहा है- भू-स्वामियों के बढ़ते शोषण और दमन के विरोध में सशस्त्र प्रतिरोध की तरफ बढ़ता हुआ यह घटनाचक्र पूरे देश के पैमाने पर, विशेषकर आदिवासियों की तरफ फैलता जा रहा है।’ क्या शीर्षक (आदिवासी: शोषितों में सबसे बुरी स्थिति) समेत इन पंक्तियों के बारे में यह ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कब लिखी गई होंगी?...

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