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कितना खतरनाक हो सकता फलों और सब्जियों पर रसायनों का इस्तेमाल

गांव कनेक्शन   पिछले वर्ष नेपाल ने भारत की सब्जियों और फलों पर रोक लगा दी थी, साल 2014 में यूरोपियन देशों ने अल्फांसो आम के निर्यात पर रोक लगा दी थी, इसके पहले भी कई देशों ने भारत की सब्जियों और फलों के निर्यात पर रोक लगा दी थी, इनके पीछे एक ही कारण है कीटनाशक और रसायनों का अंधाधुंध इस्तेमाल। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सब्जियों में कीटनाशकों के...

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पूरे परिवार को तोड़ देती है आत्महत्या, महिला किसानों को गुजारनी पड़ती है विपदा की जिदंगी

-डाउन टू अर्थ   खेती-किसानी करने वालों की जिंदगी एक ऐसे डगर पर चल रही होती है कि जब वे फिसलते हैं तो कोई न कोई फंदा उनका गला कसने को तैयार रहता है। खेतों में काम करते हुए महिला किसानों को भी बड़ी पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 1995 से 2018 के बीच कुल 23 वर्षों में खेती-किसानी से संबधित 353,802 लोगों ने...

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कपास की सरकारी खरीद 261 फीसदी बढ़ी लेकिन भाव फिर भी समर्थन मूल्य से नीचे

चालू सीजन में कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीद तो 261.30 फीसदी बढ़कर 38.66 लाख गांठ की हो चुकी है लेकिन उत्पादक मंडियों में कपास के दाम 5,200 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल ही हैं जबकि केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए लॉन्ग स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी...

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ग़रीबों-मज़दूरों की थाली से रोटियाँ ग़ायब, पर गोदी मीडिया में ग़रीब ही ग़ायब!

जुलाई 2019 में आयी विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 19 करोड़ 44 लाख लोग अल्पपोषित हैं, यानी देश के हर छठे व्यक्ति को मनुष्य के लिए ज़रूरी पोषण वाला भोजन नहीं मिलता। इसी तरह वैश्विक भूख सूचकांक 2019 के मुताबिक़ भूख और कुपोषण के मामले में भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर है, जबकि श्रीलंका (66), बंगलादेश (88) और पाकिस्तान (94) भी हमसे ऊपर...

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जीवन भक्षक अस्पताल-1: देश के अस्पतालों में हर एक मिनट पर एक नवजात शिशु की मौत

इस देश में जच्चा-बच्चा कैसे सुरक्षित रह सकते हैं, जब स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर अस्पताल तक लोगों को समय से उपचार नहीं मिल रहा। संस्थागत प्रसव के बाद एक भी बच्चे की मौत तक व्यवस्था पर सवाल जिंदा बना रहेगा। रोजाना जन्मने वाले कुल शिशुओं मे 50 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले आठ ईएजी राज्य करते हैं। यहां स्थितियां बेहद जर्जर हैं। वहीं अन्य राज्यों में भी स्थिति को संतोषजनक नहीं...

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