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निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा

पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...

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फसल के दाम का सच-- योगेन्द्र यादव

कल रात एक छोटा-सा वीडियो देखा, कुछ ही मिनट का रहा होगा. इस वीडियो में महाराष्ट्र के जालना जिले का एक किसान अपने खेत में लगी गोभी की फसल को तहस-नहस कर रहा है. किसान का नाम है- प्रेमसिंह लखीराम चव्हाण. कहानी यह है कि खरीफ में कपास की फसल बरबाद होने के बाद प्रेमसिंह ने अपने खेत में टमाटर और गोभी लगाये. लेकिन, जब चार क्विंटल टमाटर बाजार...

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क्या कहती है दौलतपुर की कहानी-- आलोक रंजन

केंद्र सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का एक चुनौतीपूर्ण अभियान शुरू किया है। तमाम तरह की रणनीति बनाने के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं, पर हमें एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिसमें किसानों में प्रगतिशील सोच विकसित हो और वे अपनी फसलों पर ऊंचा मुनाफा पा सकें। यहां मैं ऐसे ही एक किसान की कहानी आपसे साझा कर रहा हूं, जिसे बदलाव का वाहक...

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लाइलाज हो चुकी है एनपीए की बीमारी-- आदर्श तिवारी

बैंकों की तेजी से बढ़ती गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) आज एक ऐसी लाइलाज बीमारी बन चुकी हैं जिसका इलाज विशेषज्ञों को भी नहीं सूझ रहा है। इसलिए ऐसे में सवाल उठता है कि एनपीए के इस अंधकार से रोशनी कब और कैसे मिलेगी? दरअसल, बैंकों की बुनियाद को कमजोर करने में बढ़ता एनपीए एक बड़ा कारक है। बैंकों के बढ़ते एनपीए को लेकर सरकार और रिजर्व बैंक भी चिंता जाहिर...

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आर्थिक आतंकियों को मिले सजा-- तरुण विजय

नीरव मोदी हों या मेहुल चौकसी, विजय माल्या हों या कोई और, एक ऐसे समय में जब देश किसान, मजदूर, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की बात कर रहा है और सीमाओं पर हमारे सैनिक हर दिन खून की होली खेलते हुए मातृ-भूमि की रक्षा कर रहे हैं, उस समय देश से छल कर हजारों करोड़ के घोटाले करनेवाले वस्तुत: आर्थिक अपराधी नहीं, आर्थिक आतंकवादी हैं, जिन्हें वही सजा मिलनी चाहिए,...

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