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विकास का पैमाना क्या है- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 3 जनवरी, 2012: विदेशी निवेश भूमंडलीकरण की नीति का हिस्सा है। इसीलिए खुदरा व्यापार को विदेशी पूंजी के हाथों में देने के केंद्र सरकार के फैसले का स्थगन परमाणु समझौते की तरह ही है। अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते की पूरी प्रक्रिया पर नजर दौड़ाएं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में कह दिया था कि सरकार के पास यही एकमात्र एजेंडा नहीं है। यूपीए-एक सरकार का...

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अमीरी रेखा की जरूरत- सुनील

जनसत्ता 12 दिसंबर, 2011 : कुछ माह पहले जब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दिया कि शहरों में बत्तीस रु. और गांवों में छब्बीस रु. प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाएगा, तो देश के संभ्रांत पढ़े-लिखे लोगों में और मीडिया में खलबली मच गई। अहलूवालिया से लेकर जयराम रमेश तक को सफाई में बयान देने पडे। उन्होंने यह...

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...तो मिलने लगेगा दो रुपये में 35 किलो अनाज- विनोद यादव

मुंबई. केंद्रीय कृषि मंत्री एवं मराठा क्षत्रप शरद पवार ने महाराष्ट्र में अण्णा हजारे का आंदोलन बेअसर रहने की उम्मीद जताई है। उन्होंने बुधवार की शाम को महाराष्ट्र से आये पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में अण्णा ने राकांपा के आर.आर. पाटिल को छोड़ लगभग सभी मंत्रियों के खिलाफ प्रचार किया था। इसके बावजूद पाटिल बहुत कम वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। पवार ने...

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न्यूनतम समर्थन मूल्यों का संदेश- सुधीर पंवार

पिछले दिनों केंद्र्र सरकार ने कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर 2011-12 के लिए रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की। इस घोषणा में थोड़ी देरी अवश्य हुई है, पर किसानों के पास अब भी पर्याप्त समय है कि वे इन मूल्यों के आधार पर फसलों की बुवाई का निर्णय ले सकें। वर्तमान में कृषि उत्पादों की आवश्यकता एवं उत्पादन में गंभीर असंतुलन की वजह...

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जमीन से जुड़े जरूरी सवाल : हर्ष मंदर

स्वतंत्रता के इतने सालों के बाद भी लाखों देशवासी और उनके संघर्ष हमारी नजरों से ओझल हैं। भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के कारण लाखों लोगों ने अनगिनत कष्ट सहे, लेकिन उनकी तकलीफों की कहानी कभी भी पूरी तरह सामने नहीं आई। ‘विकास’ की कीमत किसानों और खेतिहर श्रमिकों की अनेक पीढ़ियों को चुकानी पड़ी है। उन्हें बलपूर्वक अपनी धरती से बेदखल करने का अर्थ है अपने सबसे निर्धन अन्न उत्पादकों को सताना, ताकि...

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