यह आम बजट आम आदमी का बजट है. बहुत ही अच्छा बजट है. सरकार ने इस बजट में गांव में रहनेवाले आम आदमी को राहत पहुंचाने का काम किया है. अब तक होता यह रहा है कि फायदा तो आम आदमी को जरूर पहुंंचता था, लेकिन उसका ज्यादातर लाभ शहरी आम आदमी उठा ले जाते थे. लेकिन, इस बार सरकार ने इस पर खास ध्यान रखा है. सरकार ने कृषि...
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मांग के बहाने जाटों की ये कैसी मनमानी! - संजय गुप्त
हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर जाट प्रदर्शनकारियों ने जैसा खौफनाक कहर ढाया और आंदोलन के नाम पर जातीय दंगे सरीखे जो हालात उत्पन्न् किए, उसकी जितनी भर्त्सना की जाए, कम है। आरक्षण आंदोलन का ऐसा भयावह हश्र समाज और राजनीतिक दलों के साथ-साथ नीति-नियंताओं को आगाह करने वाला भी है। आरक्षण की जाटों की मांग नई नहीं है। वे 1995 से ही आरक्षण की मांग करते चले आ...
More »खुली बहस के परे कोई भी विषय नहीं - मृणाल पांडे
ऋग्वेद (8, 2, 24) में मनुष्य देवताओं से पूछते हैं कि सत्य का साक्षात करने वाले ऋषि तो रहे नहीं, आने वाले समय में उनकी जगह कौन लेगा? देवताओं का जवाब है, आने वाले काल में समान स्तर के अनेक ज्ञानी जब बैठकर अपने-अपने ऊह (तर्क) और अपोह (प्रतितर्क) से हर विषय पर बहस को आगे बढ़ाएंगे तो उनके समवेत तर्क-वितर्क ही अंतिम सच का निर्णय करेंगे। एक अग्रगामी लोकतंत्र...
More »शिक्षकों के गले में लटके पत्थर जैसा एमडीएम
मध्याह्न भोजन सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के गले में लटका एक बड़ा पत्थर है. न तो इन शिक्षकों को इसकी व्यवस्था का प्रशिक्षण है, ना ही अधिकतर शिक्षकों की इसमें कोई रुचि है. अन्य सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं में जहां भी भोजन पकाने-परोसने की व्यवस्था है, वहां यह व्यवस्था इस कार्य के लिए प्रशिक्षित लोगों के हाथ में हैं, परंतु इससे भी कठिन काम सरकार...
More »महिलाओं के मुंह अंधेरे उठकर जाने की मजबूरी कब तलक - मनीषा सिंह
छत्तीसगढ़ में एक संक्षिप्त कार्यक्रम पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104 साल की एक बुजुर्ग महिला कुंवर बाई का सम्मान करके एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। कुंवर बाई ने अपनी आठ बकरियां बेचकर अपने घर में शौचालय बनवाया था और गांव को स्वच्छता के बारे में जागरूक किया था। असल में गांव-देहात में महिलाओं के लिए शौचालय एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन जागरूकता के तमाम प्रयासों...
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