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कच्छ में बढ़ते नमक उत्पादन से सिमट रहा झींगा कारोबार

मोंगाबे, 09 फरवरी गुजरात के कच्छ का सूरजबाड़ी ब्रिज डीजल का धुआं, धूल, ट्रक और ट्रेन की आवाज से आपका स्वागत करता है। आगे बढ़ने पर उस ब्रिज से नमक का मैदान दिखना शुरू होता है।  मैप में देखें तो गुजरात एक खुले मुंह जैसा दिखता है। सूरजबाड़ी इसका एक सिरा है जो गल्फ ऑफ कच्छ और अरब सागर की ओर खुलता है। यहां खाड़ियों का एक नेटवर्क जिसे सूरजबाड़ी खाड़ियां कहा...

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बजट 2024: लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण के लिए क्या खास होने वाला है?

इंडियास्पेंड, 01 फरवरी साल 2023 लैंगिक समानता के लिहाज से खासा महत्वपूर्ण साबित हुआ है। जहां एक तरफ महिलाओं के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें सुनिश्चित करने वाले ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को पास किया गया, वहीं महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए भारत की जी20 अध्यक्षता भी काफी सफल रही। लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ देखें तो तस्वीर कुछ और...

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गुजरात के दुर्लभ जंगली गधों के संरक्षण के लिये आगे आए कच्छ में नमक बनाने वाले अगरिया

मोंगाबे हिंदी, 30 जनवरी नमक के मैदानों में डेरा डालने के लिए तेजल मकवाना अपना सामान पैक कर रही हैं। दशहरा के त्यौहार के बाद वह और उनके पति दानाभाई मकवाना किराए पर एक ट्रैक्टर लेंगे और इसमें प्लास्टिक की पानी वाली टंकियों में 20 दिन का पानी, सोलर पैनल, एक पंप, एक डीजल जनरेटर, नमक बनाने के औजार, खाने-पीने की चीजें और किचन के जरूरी सामान लादकर ले जाएंगे। इतने...

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मध्‍य प्रदेश के सोयाबीन किसानों पर अनिश्चित मौसम की मार, घटते उत्‍पादन ने बढ़ाई चिंता

इंडियास्पेंड, 22 जनवरी “वहां पहाड़ी तक, जहां तक आप देख पा रहे हैं, सभी खेतों में धान लगती है। हमारे पूरे क्षेत्र में अब धान की ही खेती होती है। तीन-चार साल पहले यहां के हर खेत में सोयाबीन लगती थी। लेकिन अब ये पुरानी बात हो चुकी है।” खेत में मेड़ों पर सिंचाई के लिए पड़ी प्‍लास्‍ट‍िक की पाइप को ठीक करते हुए युवा किसान अजय मीणा बताते हैं। वे बताते...

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भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?

औपचारिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए अधिकांश अभिभावक-गण अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। बच्चों के लिए स्कूल ढूँढते हैं, बस्ता खरीदते हैं, पेन- पेन्सिल, कॉपी-किताब खरीदते हैं, स्कूल की पोशाक खरीदते हैं। तमाम सरकारों की भी यही कोशिश रही कि बच्चे स्कूल जाएँ। सरकारों ने विद्यालयों का निर्माण करवाया, शिक्षकों की नियुक्ति की और ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। पिछले कई दशकों में ऐसे कई कदम उठाए गए...

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