-बीबीसी, दक्षिण एशिया में अपने नारों, गीतों और अकाट्य तर्कों से नारीवादी आंदोलन को बुलंदियों पर ले जाने वालीं मशहूर लेखिका और नारीवादी आंदोलनकारी कमला भसीन का शनिवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया है. सारी उम्र अपनी शर्तों और मानकों पर ज़िंदगी जीने वाली 76 वर्षीय कमला भसीन जीवन के आख़िरी समय में कैंसर से जूझ रही थीं. कमला भसीन को बेहद क़रीब से जानने वालीं नारीवादी कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव बताती हैं...
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वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 34 फीसदी देशों में नहीं हैं जरूरी कानून
-डाउन टू अर्थ, दुनिया के करीब एक-तिहाई देशों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी कानून नहीं हैं। वहीं जिन देशों में इस तरह के कानून मौजूद भी हैं, वहां इनमें और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों में काफी अंतर है। यह कानून काफी हद तक डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी गाइडलाइन्स से मेल नहीं खाते हैं। वहीं करीब 31 फीसदी देश ऐसे हैं जिनके पास इन वायु गुणवत्ता मानकों...
More »टीबी ने बढ़ाया आदिवासियों में कोरोना का खतरा, राष्ट्रीय औसत से भी अधिक आंकड़ा
-जनपथ, भारत में लगभग 12 करोड़ लोग विभिन्न आदिवासी समूहों से हैं। इनमें से अधिकांश को कोई न कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं। भारत में मलेरिया के कुल प्रकरणों में लगभग एक-तिहाई आदिवासी बहुल इलाकों में से आते हैं। वर्ष 2018 में स्वास्थ्य एवं आदिवासी मामलों के मंत्रालयों द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने आदिवासी स्वास्थ्य को लेकर सौंपी गई रिपोर्ट में कहा था कि बड़ी संख्या में आदिवासी कुपोषण से...
More »विटामिन डी की ज़रूरत क्यों हैं और क्या ये कोरोना से बचा सकता है?
-बीबीसी, विटामिन डी हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों को मज़बूत करता है और स्वस्थ रखता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों को लगता है कि ये शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली को भी मज़बूत करता है और इसी वजह से ये कोविड-19 जैसे वायरस से लड़ने में भी कारगर साबित हो सकता है. विटामिन डी को आमतौर पर धूप से मिलने वाले विटामिन के रूप में जाना जाता है क्योंकि ये हमारे शरीर में तब बनता...
More »'पक्ष'कारिता: ‘उदन्त मार्तण्ड’ की धरती पर हिंदूकरण (वाया हिंदीकरण) की उलटबांसी
-न्यूजलॉन्ड्री, पश्चिम बंगाल के ऐतिहासिक बताए जा रहे असेंबली चुनाव में अगर इस बात को ध्यान में रखा जाय कि देश का पहला अंग्रेज़ी का अखबार और पहला हिंदी का अखबार, दोनों ही कोलकाता से छपना शुरू हुए थे, तो इस चुनाव को देखने-समझने की एक अलग दृष्टि हम पा सकते हैं. पश्चिम से छापाखाने का आना, अखबारों का छपना और सूचनाओं का सार्वजनिक वितरण कई मायने में उस परिघटना का...
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