जनसत्ता 25 मई, 2012: यह रास्ता जंगल की तरफ जाता जरूर है, लेकिन जंगल का मतलब वहां सिर्फ जानवरों का निवास नहीं होता। जानवर तो आपके आधुनिक शहर में हैं, जहां ताकत का अहसास होता है। जो ताकतवर है उसके सामने समूची व्यवस्था नतमस्तक है। लेकिन जंगल में तो ऐसा नहीं है। यहां जीने का अहसास है। सामूहिक संघर्ष है। एक दूसरे के मुश्किल हालात को समझने का संयम है। फिर न्याय से लेकर...
More »SEARCH RESULT
जब देश डूबें तो कौन बचाए!
नई दिल्ली, अंशुमान तिवारी; वित्तीय दुनिया चाहे जितनी पेंचदार हो, मगर यह हमेशा से एक अलिखित और व्यावहारिक भरोसे पर ही चलती है। रुपये अदा करने का वचन देने वाली कागजी मुद्रा (प्रॉमिसरी नोट) से लेकर अरबों डॉलर के बाडों और शेयरों तक फैला यही भरोसा अब दरकने लगा है। बात लीमन ब्रदर्स या बेरिंग्स नाम के बैंक अथवा एनरॉन या सत्यम जैसी कंपनी से भरोसा उठने की है ही...
More »गांधी के सिवा कोई रास्ता नहीं है -- सच्चिदानंद सिंहा से आलोक प्रकाश पुतुल की बातचीत
सच्चिदानंद सिंहा भारत के उन चुनिंदा विचारकों में हैं, जो अपने समय से लगातार मुठभेड़ करते रहते हैं. 81 साल की उम्र में भी लगातार सक्रिय सच्चिदानंद सिंहा मानते हैं कि भारत में आने वाले दिनों में अगर किसी नये समाज का निर्माण करना है तो समाजवादी विचारकों को गांधी की कुछ बातों को स्वीकारना ही होगा. उनसे कुछ सामयिक मुद्दों पर की गई बातचीत यहां प्रकाशित की जा रही...
More »