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बाबा साहेब का सपना - सतीश देशपांडे

हमारे समय की विडंबना है कि एक युग-व्यापी समाज चिंतक की भूमिका में डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के ‘अच्छे दिन' अब आते लग रहे हैं। उनके एक सौ चौबीसवें जन्मदिन के अवसर पर हम उनकी बढ़ती प्रासंगिकता में यह सांत्वना ढूंढ़ सकते हैं कि हमारे पश्चिम-परस्त, ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी जगत में देर है अंधेर नहीं। आधी सदी की ‘रुकावट' के लिए खेद है, मगर देर-सवेर डॉक्टर साहेब को अपना मुनासिब स्थान...

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नरेंद्र मोदी और व्हार्टन स्कूल ।। अश्वनी कुमार ।।

गुजरात के विवादित मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को व्हार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिसिलवेनिया में मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित किये जाने पर पूरे विश्व में उदारवादियों और प्रगतिशील लोगों के मन में सवाल उठना जायज है. हिंदुत्व राजनीति के ‘पोस्टर ब्वाय’ को मिला विवादित आमंत्रण वापस लेने से यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिसिलवेनिया के संस्थापक और संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्माण में अहम भूमिका निभानेवाले बेंजामिन फ्रैंकलिन को अवश्य ही...

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हमारे लोकतंत्र का संकट- शिवदयाल

जनसत्ता 16 अक्टुबर, 2012: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सवा अरब लोगों का। छह-सात प्रतिशत की दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था। पर इसकी अधिकांश आबादी को अब तक ‘ट्रिकल डाउन’ यानी अमीरों के उपभोग से रिस कर मिलने वाले लाभ का ही आसरा है। छीजते जाते संसाधन, बिगड़ता जाता पर्यावरण, जलावतनी और विस्थापन, एक-दूसरे को काटती और खारिज करती पहचानें, लगभग एक-तिहाई से भी अधिक भूभाग सैन्यबलों के भरोसे, और इतने पर भी धन...

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पलायन (माइग्रेशन)

खास बात • किसी प्रांत से उसी प्रांत में और किसी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में पलायन करने वालों की संख्या पिछले एक दशक में ९ करोड़ ८० लाख तक जा पहुंची है। इसमें ६ करोड़ १० लाख लोगों ने ग्रामीण से ग्रामीण इलाकों में और ३ करोड़ ६० लाख लोगों ने गावों से शहरों की ओर पलायन किया। # • पिछले एक दशक को आधार मानकर अगर इस बात की गणना करें कि किसी वासस्थान को छोड़कर कितने लोग दूसरी जगह रहने...

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