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ग्राउंड रिपोर्टः धुंआ और राख के बीच घुटती लाखों जिंदगियां

जनचौक, 15 जुलाई  जब मेरे इलाके में फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुई थीं, तो मेरी उम्र लगभग 40 साल थी। मेरे गांव वाले बहुत खुश थे कि अब हमें रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। हमारे इलाके में नये-नये अस्पताल व विद्यालय भी खुलेंगे, चमचमाती सड़कें बनेंगी। लेकिन आज 30 साल बाद जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो महसूस होता है कि विकास के नाम पर हमारे इलाके...

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भारत में कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत, किसान आंदोलन की जीत से आगे बढ़कर नया घोषणापत्र बनाने का समय

-द प्रिंट, किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत के साथ एक खतरा यह बंध गया है कि कहीं आंदोलन यथास्थितिवाद के गर्त में ना लुढ़क जाये. ऐसा ना तो इष्ट-अभीष्ट है और ना ही आंदोलन के लिए व्यावहारिक. हां, हमारे आंदोलन को यथास्थितिवाद के रसातल में ढकेलने का काम एक-दूसरे के विरोधी नजर आने वाले दो खेमों की तरफ से हो सकता है. ऐसा एक खेमा बाजारवादी सुधारों के पैरोकार पंडितों का है...

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मीठा देने वाले गन्ना मजदूर एक-एक निवाले को मोहताज क्यों?

-कारवां, एक तरफ, देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं, दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में शोषण का ऐसा जाल बिछा हुआ है, जो हमें दिखाई तो नहीं देता है लेकिन दिन-ब-दिन अधिक फैलता और कसता जा रहा है. गन्ने की खेती के इस जाल में फंसे मजदूर और छोटे किसान अपनी बेबसी का रोना रो रहे हैं....

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जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन पानी नही

-वाटर पोर्टल, यदि पृथ्वी पर पानी नहीं रहेगा तो क्या  होगा? इस प्रश्न का एक ही उत्तर नजर आता है- ‘सर्वनाश’।यह सिर्फ कल्पना  नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से  भूगर्भीय जल का जो  स्तर  है वो लगातार तेजी से गिरता जा रहा है,   ग्लेशियर  सिकुड़ते जा रहे है, अगर  पानी को बचाने के प्रति लोग गंभीर नहीं हुए तो एक दिन जरूर ऐसा आएगा जब  जल के साथ-साथ धरती से...

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मुस्लिम-विरोध और हिंसा: वीएचपी की 10 पत्रिकाओं का लेखाजोखा

-न्यूजलॉन्ड्री, किताबें, अखबार और पत्रिकाएं जहरीली विचारधारा प्रसारित करने का सबसे महत्वपूर्ण हथियार है. सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन ने एक बार कहा था, "किताबें अन्य सभी प्रचार माध्यमों से मुख्य रूप से भिन्न होती हैं क्योंकि एक पुस्तक किसी भी अन्य माध्यम से ज्यादा, पाठक के दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण रूप से बदल सकती है." लगभग 1870 से 1918 तक भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रारंभिक चरण में राजनीतिक प्रचार और शिक्षा, राष्ट्रवादी विचारधारा...

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