पंचायत शासन की सबसे निचली इकाई हैं. सरकार गांवों की बेहतरी के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन आज भी देश की अधिकतर पंचायतें सूचना क्रांति के इस दौर में भी सरकार की योजनाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए बाबुओं या पंचायत प्रतिनिधियों पर निर्भर है. इन्हीं सब लोगों को सही सूचना मुहैया कराने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया है डिजिटल फाउंडेशन...
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खस्ताहाल स्कूली शिक्षा से संकट में छात्रों का भविष्य
इंदौर के पास स्थित देपालपुर में स्कूली शिक्षा के नाम पर सरकारी खानापूर्ति सामने आई है। इस विकासखंड में ऐसे कई स्कूल हैं, जो एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। यह खबर एक तरह से पूरे देश की निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। 12 लाख शिक्षकों की कमी है देशभर में 50 प्रतिशत स्कूलों साफ पीने की सुविधा नहीं ...
More »जिनको हाशिए पर भी जगह नहीं- अतुल चौरसिया
हिसार के पश्चिमी छोर पर स्थित एक विशाल फॉर्महाउस विरोधाभासों की जमीन है. इसके आधे हिस्से में एक शानदार कोठी, लॉन और पोर्टिको बने हैं जबकि बाकी का आधा हिस्सा बेतरतीब काली पॉलीथीन से ढंकी करीब 60-70 झुग्गियों से पटा हुआ है. जहां-तहां पानी के गड्ढे हैं जिनमें मच्छर और मक्खियां बहुतायत में पल-बढ़ रहे हैं. इसी झुग्गी बस्ती में अपनी कुछ मुर्गियों और दो सुअरों के साथ 80 साल...
More »नियमगिरि की जीत देश के हर गांव की जीत है : निखिल डे
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने नियामगिरी के निर्णय को काफी अहम बताया है. उन्होंने कहा कि यह मानकर चलना कि दिल्ली में बैठकर कुछ अधिकारियों द्वारा या कंपनियों के प्रतिनिधियों द्वारा गांव के लोगों के विकास के लिए लिया गया फैसला बिल्कुल सही है, और ग्रामसभा जो कि अपने गांव के विकास के लिए इन फैसलो का विरोध करती है, वह गलत है, एक तरह से उनकी समझ पर सवाल...
More »विकास का शौचालय सिद्धांत- यशवंत व्यास
आत्मविकास की परंपरा में शौचालय का भारी योगदान रहा है। दिशा-मैदान की भारतीय रीति ने कई लोगों को दिमागी तौर पर परेशान किया। कहा जाता है कि गांवों में जंगल की झाड़ियों को ढूंढने और लौटते समय कुएं से दातौन चबाते हिंदुस्तानी लोग परदेसियों के लिए अजूबे थे। भूमिपुत्रों के देश में शौचालय की परंपरा का आगमन आयातित संस्कृति का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इससे कौन इनकार करेगा कि महानगरों...
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