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बेड़ियों और यातनाओं में गुज़रता बचपन जिससे नहीं मूंदी जा सकती हैं आंखें

द प्रिंट, 12 जून  बाल मज़दूरी—ये दो शब्द एक साथ कहां मेल खाते हैं? फिर भी यह एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम आंख नहीं मूंद सकते. बाल मजदूर एक समाज के रूप में हमारी सामूहिक विफलता तो उद्गाटित करते ही हैं, हमारी संवेदना और नैतिक मूल्यों पर भी तमाम सवाल खड़े करते हैं. हम सिर्फ नंबरों की बात करते हैं, लेकिन हमेशा भूल जाते हैं कि हर बाल मजदूर का...

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यूपी और बिहार के गरीबों के बीच बढ़ता जा रहा है हानिकारक पैकेटबंद खाने का चलन: अध्ययन

जनपथ, 27 मार्च एक अध्ययन से पता चला है कि भारत के वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर लोग काफी मात्रा में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड का सेवन कर रहे हैं। एक ऐसे देश में जो कुपोषण के मामले में दुनिया के सबसे गंभीर दोहरे बोझ का सामना कर रहा है, सबसे कम आय वर्ग के लोग भूख का सामना करने से अस्वास्थ्यकर स्नैक्स पर निर्भर हैं। यह अध्ययन इस बात...

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पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य

पोषक अनाजों की अहमियत को समझते हुए भारत सरकार ने खाद्य और कृषि संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा था। नतीजन पूरी दुनिया, वर्ष 2023 को, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मना रही है।भारत,दुनिया में पोषक अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है। साल 2020 में विश्व के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसदी के आस–पास थी। पढ़िए इस लेख में पोषक अनाजों पर विस्तार से; प्राचीन...

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‘मैनहोल टू मशीनहोल’ का वित्त मंत्री का दावा शब्दों की कलाबाज़ी भर है: सफाई कर्मचारी आंदोलन

द वायर, 3 फरवरी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बुधवार को की गई बजट घोषणाओं में मशीन से सीवर सफाई करने की बात कही गई है. उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा. वित्त...

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धंसते जोशीमठ से उठते सवाल, सरकारों ने पहाड़ी राज्य के हिसाब से नहीं बनाया विकास मॉडल

डाउन टू अर्थ, 16 जनवरी जोशीमठ में जो आज हो रहा है उसकी पठकथा तो कई सालों से लिखी जा रही थी, ये प्राकृतिक संसाधनों की लूट का खुला प्ररिणाम है। ये नाजुक परिस्थितिकीतंत्र के ऊपर आर्थिक तंत्र को तबज्जो देने का परिणाम है। हम सब जानते हैं कि हिमालय बहुत नाजुक पर्वतश्रृंखला है और इसका परिस्थितिकीतंत्र अतिसंवेदनशील है। हिमालय सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर...

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