हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2016 में 118 देशों की सूची में भारत को 97वें स्थान पर रखा गया है। हममें से जो लोग भारत में भूख और पोषण से संबंधित मुद्दों की उपेक्षा के लिए चिंतित रहते हैं, उनके लिए ये आंकड़े बड़ी खबर हैं, जिसने मीडिया का भी ध्यान खींचा है। कुपोषण एक ऐसी समस्या है, जो विभिन्न पीढ़ियों में पाई जाती है। एक कुपोषित मां द्वारा एक...
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छत्तीसगढ़-- स्वास्थ्य केंद्र से गर्भवती को भगाया, जंगल में हुआ बच्चे का जन्म
सिंगीबहार/जशपुरनगर (निप्र)। उप स्वास्थ्य केंद्र सिंगीबहार की एएनएम ने रविवार 22 मई की सुबह प्रसव पीड़ा से तड़प रही एक गर्भवती महिला को भगा दिया। इस बीच परिजन महिला को लेकर तपकरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए रवाना हुए, लेकिन महिला ने बीच रास्ते में पड़ने वाले बाबूसाजबहार के जंगल में बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद परिजन प्रसूता और बच्चे को घर ले गए। मामले की जानकारी होने के...
More »दोहरी चुनौतियों के सामने- ऋतु सारस्वत
हाल ही में विश्व में प्रथम रैंकिंग प्राप्त टेनिस खिलाड़ी जोकोविच ने कहा कि पुरुष खिलाड़ियों के मैचों को दुनिया भर में महिलाओं के मैचों से ज्यादा देखा जाता है, इसलिए पुरुष खिलाड़ियों की कमाई ज्यादा होनी चाहिए। इससे पहले इंडियन वेल्स टूर्नामेंट के मुख्य कार्यक्रम अधिकारी रेमंड मूर ने कहा था कि डब्ल्यूटीए टूर पुरुष खिलाड़ियों की बदौलत ही चल रहा है। ये दोनों वक्तव्य स्त्री के प्रति पुरुषवादी...
More »अव्यवस्था का आलम, एक पलंग पर दो प्रसुताएं सोने को मजबूर
राजनांदगांव। मेडिकल कॉलेज अस्पताल के जचकी वार्ड में महिलाओं को कड़ाके की ठंड में भी बेड नसीब नहीं हो रहा। पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के चलते एक ही बेड पर दो-दो प्रसूताओं को सुला दिया गया है। इतना ही नहीं कई महिलाओं को तो जमीन पर ही लिटा दिया गया है। जिलेभर से पहुंच रही प्रसुताओं की संख्या व वार्ड में बिस्तरों की कमी को देखने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन...
More »बच्चों की सेहत : कुछ और आगे बढ़े हम-- ज्यां द्रेज
हाल ही में जारी रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रेन (आरएसओसी) के निष्कर्षों में मुख्यधारा की मीडिया ने कोई खास दिलचस्पी नहीं ली. यह दुखद है, क्योंकि सर्वेक्षण के निष्कर्षों में सीखने के लिए काफी कुछ हैं. तीसरा नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (एनएफएचएस) करीब दस साल पहले 2005-06 में संपन्न हुआ था. चौथे एनएफएचएस के पूरा होने में लगी भारी देरी से भारत के सामाजिक आंकड़े बहुत पुराने हो गये हैं. सौभाग्य...
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