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क्या मोदी सरकार का आख़िरी बजट वास्तव में भारत की तरक्की की कहानी बयां करता है?- सचिन कुमार जैन

क़र्ज़दार सरकारें देश की आज़ादी को सुरक्षित नहीं रख सकती हैं, क्योंकि तब क़र्ज़ देने वाला नीतियों पर नियंत्रण रखता है. माध्यम वर्ग को आयकर में थोड़ी छूट और मिली, 12 करोड़ किसानों को हर रोज़ 16.50 रुपये मिलेंगे, क्योंकि वे पिछले दिनों कमर कस के बाहर निकल आए थे. 2030 तक नदियों को साफ़ करने का वायदा, 2030 में सबको पीनी का साफ़ पानी मिलने का सुखद स्वप्न; बहुत लोगों...

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किसानों को मिले दीर्घकालिक हल-- आशुतोष चतुर्वेदी

मोदी सरकार की ओर से पेश किया गया अंतरिम बजट वैसे तो समाज के हर वर्ग को साधने वाला है, लेकिन यह छोटे किसानों पर विशेष मेहरबान है. अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बजट में किसानों, मजदूरों और मध्य वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाओं का एलान किया. यह मौजूदा सरकार का अंतिम बजट था. वैसे तो अंतरिम बजट में अगली सरकार चुने जाने तक के खर्च...

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खुद की अदालत में मीडिया-- मृणाल पांडे

हमारे साहित्य या मीडिया में खुद अपने भीतरी जीवन की सच्चाई जिक्री तौर से ज्यादा, फिक्री तौर से कम आती है. मसलन दर्शक-पाठक भली तरह जान चुके हैं कि मीडिया के भीतर कैसी मानवीय व्यवस्थाएं हैं, खबरें कैसे जमा या ब्रेक होती हैं. पत्रकारों के बीच एक्सक्लूसिव खबर देने के लिए कैसी तगड़ी स्पर्धा होती है. लेकिन, पिछले दो दशकों में उपन्यासों, कहानियों या मीडिया पर लिखे जानेवाले काॅलमों में...

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कुल न्यायाधीशों में 50 फीसदी संख्या महिलाओं की होनी चाहिए: संसदीय समिति

नई दिल्ली: आजादी के बाद से भारत के सुप्रीम कोर्ट में केवल छह महिला न्यायाधीश नियुक्त किये जाने एवं अदालतों में महिला जजों की कम संख्या का हवाला देते हुए संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि कुल न्यायाधीशों में महिला न्यायाधीशों की संख्या करीब 50 प्रतिशत होनी चाहिए. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दोनों सदनों में पेश कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति की...

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आजाद मीडिया के पक्ष में तर्क-- मृणाल पांडे

देश के हर चौराहे, चायखाने, पान की दुकान और शिक्षा परिसर में आजकल भारतीय लोकतंत्र के भविष्य पर चिंता जतायी जा रही है, नाना अटकलें लगायी जा रही हैं. और इन अटकलों का स्रोत मीडिया है, पारंपरिक या सोशल मीडिया. आजादी के सत्तर वर्षों बाद देश जनता को जागृत करनेवाली ताकत के रूप में मीडिया को पहचान रहा है, जिसके विमोचन के लिए गांधी जी ने ‘नवजीवन' नामक साप्ताहिक...

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