अगर आप मानते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य देश के ज्यादातर किसानों को उपज का लाभकर मूल्य दिलाने में कारगर है तो आप गलत सोच रहे हैं। अगर विश्वास ना हो तो नीचे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की नई रिपोर्ट के इन तथ्यों पर गौर कीजिए।(देखें नीचे दी गई रिपोर्ट) साल 2012 के जुलाई महीने से दिसंबर महीने के बीच देश के किसान प्रति क्विंटल धान में से महज 17 किलो सहकारी या...
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कहीं सूखे ही न रह जायें खेत- जयंतीलाल भंडारी
विगत 26 अप्रैल को ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो (एडबल्यूबी) ने कहा कि प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गरम होने की वजह से अल नीनो के भारत आने की आशंका सामान्य से तीन गुना ज्यादा है। इससे देश के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव होगा। इसी तरह की चिंताजनक बात भारतीय मौसम विभाग ने भी अपनी रिपोर्ट में कही है। कहा गया है कि इस वर्ष अल नीनो की वजह से...
More »किसान के अस्तित्व की लड़ाई- योगेन्द्र यादव
टेलीविजन चैनलों ने किसान को याद किया, ताकि पूरा देश किसान को भूल सके! यही किसान और खेती की त्रासदी है. क्या किसान आंदोलन इस त्रासदी को पलट सकेंगे? असली त्रासदी यह नहीं कि गजेंद्र नाम का एक और किसान अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसके मां-बाप ने अपने बुढ़ापे का सहारा खो दिया और बच्चों ने अपना पिता. असली त्रासदी है कि किसानों की आत्महत्या का यही सिलसिला...
More »बात निकली है तो दूर तलक जाएगी - भवदीप कांग
गजेंद्र सिंह की मौत का राजनीतिकरण इस पूरे प्रकरण का सबसे दु:खद पहलू था। हो सकता है उसकी आत्महत्या 'जेनुइन" हो। यह भी हो सकता है, जैसा दिल्ली पुलिस का मानना है कि उसकी आत्महत्या महज एक दुर्घटना हो, एक नाटकीय प्रसंग। लेकिन गजेंद्र की मौत इन मायनों में अपने लक्ष्य को अर्जित करने में जरूर कामयाब रही कि उसने किसानों की दुर्गति की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट...
More »कारपोरेट खेती से किसका भला होगा- सुभाषचंद्र कुशवाहा
मानो फसलों की बर्बादी और किसानों की आत्महत्या ही काफी न हो, अब एसोचैम ने शोध प्रस्तुत किया है कि कॉरपोरेट और ग्रुप फार्मिंग ही छोटे किसानों को आपदाओं से बचाएगी। एसोचैम किसानों को राहत देने के पक्ष में नहीं है। उसकी मंशा कंपनियों को राहत देने की है। उसके मुताबिक, किसानों की जमीन औने-पौने दामों में कॉरपोरेट को सौंप देनी चाहिए। उसका मानना है कि कृषि ऋण लगातार बढ़ाने...
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