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सामाजिक, आर्थिक व जातीय जनगणना : समावेशी जुबान, मंशा अनजान!

आजादी के बाद भारत में गरीबी रेखा तय करने की दिशा में उठाये गये विभिन्न कदमों की सूची में पिछले कुछ वर्षो के दौरान संचालित सामाजिक, आर्थिक व जाति सर्वेक्षण का महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें पहली बार किसी परिवार की सामाजिक पहचान को तरजीह दी गयी है. देश में लंबे अरसे से ऐसी मान्यता रही है कि गरीबी की मार कुछ सामाजिक श्रेणियों को ज्यादा ङोलनी पड़ती है, जिनमें से...

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न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी

श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...

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अंत्योदय अन्न योजना को खत्म करने का नायाब बहाना!

क्या सरकार तकनीकी नुक्तों की आड़ में खाद्य सुरक्षा कानून से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती है ? इस कानून के क्रियान्वयन के लिए संघर्ष करने वाले नागरिक संगठनों ने ऐसी ही आशंका जतायी है।   नागरिक संगठनों को आशंका है कि समाज के सबसे गरीब तबकों को खाद्य-सुरक्षा प्रदान करने के लिए जारी अंत्योदय अन्न योजना को सरकार ने पीडीएस कंट्रोल आर्डर के जरिए निशाना बनाया है।   पीडीएस कंट्रोल आर्डर में कहा गया है कि मौत या फिर पलायन की...

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अंत्योदय योजना खतरे में - ज्यां द्रेज

गरीब-विरोधी होने की धारणा से भले ही मोदी सरकार लड़ने का दावा कर रही हो, मगर अंत्योदय अन्य योजना को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली से चरणबद्ध तरीके से बाहर निकालने का फैसला कर उसने गरीबों को एक बड़ा झटका दिया है। यह कदम अन्यायपूर्ण और अवैध है।   अंत्योदय योजना के तहत गांवों के अत्यधिक गरीब परिवारों को 35 किलो खाद्यान्न नाममात्र की कीमतों (चावल तीन रुपये प्रति किलो और गेहूं दो...

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जीडीपी का तड़का और 20 करोड़ लोगों की भुखमरी- आशुतोष ओझा

नई दिल्‍ली। मोदी सरकार पर कॉरपोरेट की पैरोकार होने के आरोप लगते हैं। ये आरोप सही हैं या गलत, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन,सरकार के एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरी कैबिनेट जिस तरह उपलब्धियों का बखान और मीडिया के जरिए ढिंढोरा पीट रही है, वह संस्‍कृति निश्चित रूप से कॉरपोरेट जैसी ही लगती है। सरकार की बीते एक साल की उपलब्धियों के शोर...

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