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जीएसटी की जटिलताओं से बेचैन - संजय गुप्त

पिछले वर्ष आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब दीपावली के तुरंत बाद नोटबंदी का ऐलान किया था, तब एक बड़े व्यापारी वर्ग को यह लगा था कि सरकार के इस कदम से उसके समक्ष तमाम मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। नोटबंदी को लेकर व्यापारी वर्ग के असंतोष के बाद भी मोदी सरकार इसे लेकर आश्वस्त थी कि यह एक आवश्यक कदम है और आगे चलकर इसका आर्थिक लाभ...

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अर्थव्यवस्था पर मुस्तैदी जरूरी-- डा. अवनीन्द्र ठाकुर

पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आये कई आंकड़ों ने वर्तमान सरकार की कई नीतियों की सफलता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है. उदाहरण के तौर पर देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में कमी, सरकारी एवं निजी क्षेत्र में रोजगार की कमी, औद्योगिक विकास की चिंताजनक स्थिति इत्यादि कुछ आंकड़े हैं, जो सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.   इस परिप्रेक्ष्य में...

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अर्थव्यवस्था की सेहत का सवाल - संजय गुप्त

पूरे देश में टैक्स की एक प्रणाली के रूप में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करते समय यह आशंका व्यक्त की गई थी कि इसके चलते अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए ठहराव की स्थिति देखने को मिल सकती है। वर्तमान में ऐसा ही दिख रहा है। पिछली तिमाही में विकास दर जिस तरह 5.7 प्रतिशत ही दर्ज की गई, उससे तमाम राजनेता और कुछ अर्थशास्त्री यह...

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बड़े बांध का बड़ा विरोध-- नवीन जोशी

कई तकनीकी एवं कानूनी रुकावटों और लंबे जन-आंदोलनों के बावजूद सरदार सरोवर बांध अंतत: अपनी पूरी ऊंचाई के साथ हकीकत बन गया. मगर ‘एक आदिवासी के विस्थापन की तुलना में सात आदिवासियों को लाभ पहुंचाने' के दावे वाले, दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस बांध के उद्घाटन के साथ बड़े बांधों के व्यापक नुकसान की चर्चा थम नहीं गयी है.    बड़े बांधों के खिलाफ आवाज बुलंद करनेवालों के तेवर और...

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बुढ़ापे में ज्यादा देखभाल की जरूरत-- आशुतोष चतुर्वेदी

मुमकिन है कि आपने यह ह्दयविदारक खबर पढ़ी हो. यह खबर किसी को भी झकझोर कर रख सकती है और समाज के लिए एक आईना है. यह खबर एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर भी इशारा करती है कि देश में वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और पुराना सामाजिक तानाबाना टूट चुका है. संयुक्त परिवारों का दौर गया और एकल परिवारों में मां-बाप के लिए स्थान नहीं...

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