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सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश

अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...

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न बदलें महिला हितैषी कानून- सुभाषिनी अली सहगल

कभी-कभी बड़ी सुर्खियों के पीछे महत्वपूर्ण खबरें छिप जाती हैं। कुछ दिन पहले एक खबर छपी थी कि मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने यह फैसला लिया है कि फौजदारी कानून की धारा 498-ए के तहत दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर आरोपी या आरोपियों को गिरफ्तार न करके यह कोशिश की जाएगी कि दोनों पक्षों के बीच समझौता किया जाए। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि इस...

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राजनीतिक दलों में दलितों को लुभाने की होड़ - शिवानंद तिवारी

यह सबने देखा कि पिछले दिनों करीब-करीब सभी दलों में आंबेडकर जयंती मनाने को लेकर किस कदर होड़ रही। इस होड़ ने यही साबित किया कि दलित वोट की महत्ता आज पहले की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ गई है। दलितों को मतदान का अधिकार तो शुरू से ही है, लेकिन समाज में अपनी दयनीय स्थिति और राजनीतिक चेतना के अभाव में दलित समाज अपने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं...

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जंगल के दावेदारों पर मंडराता खतरा - के सी त्यागी

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद अब आदिवासियों और जंगलों का मामला विवाद में है। ग्राम सभा की सहमति को, जो वन अधिकार कानून के अंतर्गत अनिवार्य है, समाप्त करने के संकेत मिल रहे हैं। संसद के इसी सत्र में यह प्रस्ताव लाया जा रहा है। जिन्हें हम आज अनुसूचित जातियों के अंतर्गत गिनते हैं, उन आदिवासियों की दशा अंग्रेजों के आगमन के समय से ही दयनीय हो चली थी। अंग्रेज...

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शक्ल ही भद्दी हो तो आईना क्या करे? - शरद यादव

नैतिकता, स्त्री-पुरुष संबंधों और स्त्री से जुड़े तमाम सवालों को लेकर हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में खासकर खाए-अघाए तबके में पाखंड इस कदर हावी है कि वह अपनी तमाम कुंठाओं को तरह-तरह से छुपाता है और सच का या कड़वे सवालों का सामना करने से कतराता और घबराता है। इसलिए 'नईदुनिया" के 18 मार्च के अंक में श्री अमूल्य गांगुली ने मेरी आलोचना करते हुए जो लेख लिखा, उससे...

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