खेती की जब बात आती है, तो सभी आकाश की ओर ताकते हैं. अगर माॅनसून का समय और उसकी मात्रा उचित या पर्याप्त नहीं है, तो राजनीति की गति और दिशा दोनों बदल जाती है. बजट से लेकर बाजार तक सब आकाश ही निहारते हैं. कृषि में जोखिम प्रबंध बहुत ही कमजोर है. हरित क्रांति का चाहे जिस तरह से विश्लेषण या आलोचना करें, लेकिन उसने हमारी कृषि को तात्कालिक...
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राज्य और केंद्र के झगड़े में भुगतेंगे बिहार के किसान
पटना : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की प्रीमियम राशि को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के झगड़े में राज्य के 16 लाख से अधिक किसानों को बीमा का लाभ इस साल नहीं मिल पायेगा. राज्य सरकार को इस बीमा योजना पर साढ़े छह सौ करोड़ रुपये खर्च करना होगा. इतनी ही राशि केंद्र सरकार भी वहन करेगी. 15 अगस्त तक राज्य सरकार को बीमा कंपनियों का चयन कर...
More »किसानों के खाते से पैसे निकाले तो बैंक अफसरों को बनाएंगे बंधक
फसल बीमा योजना के विरोध में जिलेभर के किसानों ने प्रदर्शन किया। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनके खाते से जबरदस्ती कोई राशि काटी गई तो संबंधित बैंक अफसर को बंधक बना लिया जाएगा। इस मामले को लेकर खफा किसान सोमवार को लघु सचिवालय पहुंचे और डीसी मंदीप सिंह बराड़ को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा और इस योजना को तुरंत रद्द करने की मांग की। इस...
More »बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर
सतत विकास वैश्विक सामाजिक प्रगति रिपोर्ट में भारत के 98वें स्थान (133 देशों में) पर होने की निराशाजनक खबर के बाद अब चिंताजनक सूचना यह आयी है कि सतत विकास सूचकांक में हमारा देश 110वें (149 देशों में) पायदान पर खड़ा है. वर्ष 2030 तक गरीबी, भूख, अशिक्षा से मुक्ति के साथ बेहतर पर्यावरण का वैश्विक लक्ष्य पाने के हमारे प्रयासों पर यह एक गंभीर टिप्पणी है. इस रिपोर्ट की मुख्य...
More »बिछड़े सब बारी-बारी, खेती-बारी-- अनिल रघुराज
आखिर कोई कितना इंतजार करता! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं.' मगर, आजादी से लेकर कृषि को इंतजार करते-करते अब सात दशक होने जा रहे हैं. वह अब भी भगवान भरोसे है. इंद्रदेव नाराज, तो सूखे की त्रासदी और खुश तो बहुत बड़े इलाके में बाढ़ की तबाही. जिनके बरदाश्त करने की हद चुक जाती है, वे इस...
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