नई दुनिया,कोरबा (निप्र)। संरक्षित बैगा आदिवासी जनजाति वर्ग आज भी शिक्षा से कोसों दूर है। इस वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लाख दावे सरकार कर ले, पर हकीकत कुछ और है। बैगा आदिवासी के बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देखे हैं। कापी पुस्तक की जगह हाथ में जाल थाम लिया है और पूरा दिन मछली पकड़ने में बीत रहा। गांव से 5 किलोमीटर दूर स्कूल होने...
More »SEARCH RESULT
सत्यार्थी की ख्वाइश, इतिहास के पन्नों में सिमट जाए बाल श्रम
प्रभात खबर,नयी दिल्ली : बच्चों के प्रति जज्बे को वैश्विक आंदोलन के रूप में बदलने की अपील करते हुए नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने आज कहा कि वह चाहते हैं कि बाल श्रम इतिहास के पन्नों में सिमट जाये. नोबल शांति पुरस्कार ग्रहण करने के बाद ओस्लो से आज ही दिल्ली लौटे सत्यार्थी ने बाल श्रम के खिलाफ लंबित कानून को पारित किये जाने की भी वकालत की और कहा...
More »निमाड़ को भी चाहिए 'सत्यार्थी' और 'मलाला'
विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव, खरगोन। सुमित। उम्र-14 साल। काम- बस स्टैंड की एक होटल में टेबल पर पोंछा लगाना। दिनेश। उम्र-12 साल। काम- नगर पालिका क्षेत्र में चाय की गुमटी पर ग्लास धोना। सुबह साढ़े 7 बजे से रात्रि 8 बजे तक इन्हें फुरसत नहीं। उधर रोली शहर के पॉश इलाके में घर-घर जाती है। उम्र-13 साल। यह अपनी मां के साथ झाड़ू-पोंछा, बर्तन साफ करने में हाथ बटाती है। ये तीन...
More »निंदाई-गुढ़ाई के साथ पढ़ाई, अब इंग्लैंड में पीएचडी
उत्तम मालवीय, बैतूल। खेत में निंदाई-गुढ़ाई करते और मवेशी चराते हुए बचपन बीता। बिजली नहीं होने पर दीपक के उजाले में पढ़ाई की। गांव में स्कूल नहीं था तो रोज कई किमी की दूरी स्कूल के लिए तय की। अब उसके सपने पूरे होने को हैं... वह इंग्लैंड से पीएचडी करेगी। संघर्ष और जिजीविषा की यह कहानी है जिले से करीब 100 किमी दूर स्थित भीमपुर ब्लॉक के छोटे से ग्राम...
More »यहां गांव के बच्चे करते हैं अंग्रेजी में गिटपिट
नई दुनिया,जबलपुर। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले अजय कोल की जिंदगी बदली-बदली सी है। मिट्टी में खेलते अस्त-व्यस्त से गांव के दूसरे छोटे बच्चों से वह कुछ अलग है। साफ-सुथरा। बातें भी समझदारी वाली। मजदूर माता-पिता का यह बेटा 'वाट इज योर नेम' जैसे अंग्रेजी के अन्य दूसरे सवालों के जवाब देना भी जानता है। कक्षा आठ में पढ़ रही नेहा गोंटिया ने भी अपने रहन-सहन का तरीका बदल लिया...
More »