जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
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ऑर्गेनिक खेती का पर्यावरण पर बुरा असर
वाशिंगटन। भोजन की मांग को पूरा करने के लिए शुरू की गई ऑर्गेनिक खेती का पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार एक समय खाद्यान्न के "स्थायी हल" के तौर पर शुरू की गई ऑर्गेनिक खेती पृथ्वी के जलवायु के लिए खतरनाक साबित हो रही है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि इससे ग्रीनहाउस गैसों में कटौती होने की बजाय उनमें वृद्धि हो रही है। इस अध्ययन...
More »मां के दूध में मिले अंदाजे से 100 गुना ज्यादा पेस्टिसाइड
सिरसा (हरियाणा): क्या नवजात के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाने वाला मां का दूध भी सुरक्षित नहीं रहा? एक रिपोर्ट में मां के दूध में पेस्टिसाइड के अंश मिलने की बात सामने आई है। सिरसा में एक किलो दूध में 0.12 मिलीग्राम पेस्टिसाइड मिला। यह वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अंदाजे से 100 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सरकार ने खाने-पीने की चीजों में हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं...
More »दूसरी हरित क्रांति एक और भ्रांति-- योगेन्द्र यादव
हमारे प्रधानमंत्री को जुमलों का शौक है. खासतौर पर उधार के जुमलों का. इस बार उन्होंने ‘दूसरी हरित क्रांति’ का आह्वान किया है. हजारीबाग के निकट बरही में 28 जून को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ (हर बूंद से ज्यादा दाने पैदावार) का नारा दिया. नारों में कुछ बुराई नहीं है, बशर्ते उनके पीछे कोई नयी सोच हो, नीति हो या नीयत...
More »प्रचंड गरमी पर उबलती बहस- इला भट्ट
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व, विशेष रूप से भारत, गरीबी के मुद्दे पर एक साथ नहीं आया है, जैसा कि यह जलवायु परिवर्तन पर एक साथ आया है. ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं. इसलिए, मैं भारत सरकार से आग्रह करूंगी कि देश का आइएनडीसी तैयार करते समय इसका ध्यान रखे कि क्या हमारे आइएनडीसी गरीबी को कम करने की दृष्टि से कार्बन उत्सजर्न को कम करने के लिए...
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