भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
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गांव के शासन में अहम भूमिका निभा रही है महिला ग्रामसभा
महात्मा गांधी का सपना था कि गांव का शासन ग्रामीण चलायें और अपनी प्राथमिकताएं भी वे खुद ही तय करें. हालांकि अब तक यह सपना पूरी तरह सार्थक तो नहीं हो पाया है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि पंचायत चुनाव के बाद इसकी संभावनाएं काफी प्रबल हुईं हैं. गांधीजी के सपने को साकार करने की ओर एक कदम के रूप में महिला ग्रामसभा को देखा जा सकता है. क्या...
More »मुखिया संवार रहे हैं गांव-पंचायत की सूरत
सरकार द्वारा पंचायतों को हस्तांतरित अधिकार का भरपूर उपयोग जामाताड़ा जिले के पंचायत प्रतिनिधियों ने किया. जब से सरकार ने शिक्षा, कल्याण, स्वास्थ्य, आपूर्ति, मनरेगा योजना का संचालन सहित अन्य कार्यक्रमों के अनुश्रवण का जिम्मा पंचायतों को दिया है, तब से इन प्रतिनिधियों में काम करने का एक अलग उत्साह देखा जा रहा है. प्रतिनिधि सरकार की सभी कल्याणकारी एवं महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ हर जरूरतमंद लोगों को दिलाने के...
More »आधी आबादी की राजनीतिक हिस्सेदारी- अरविन्द मोहन
चुनाव आते ही अगर सभी दलों और सचेत लोगों को महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का मसला याद आने लगता है, तो यह महिलाओं के प्रति उनके अनुराग या देश में महिलावादी आंदोलन का जोर बढ़ने का नतीजा नहीं है. अभी तक महिलाओं का अपना आंदोलन शहरों को छोड़ कर कहीं नहीं गया है. असल में इसका कारण हाल के चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है. बीते दो-ढाई दशक में अगर...
More »ये मुखिया मैडम भी हैं और सहिया दीदी भी
पूर्वी सिंहभूम के पोटका पंचायत की मुखिया पानो सरदार रोज सुबह सवेरे अपनी साइकिल पर सवार होकर निकल जाती हैं और अपने गांव के घर-घर जाकर लोगों को स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर जागरूक करती हैं और अगर कोई व्यक्ति रोग से पीड़ित नजर आया तो उसे अस्पताल ले जाकर उसका इलाज भी करवाती हैं. उनकी इस यात्र के दौरान गांव के लोग उनसे मिलकर पंचायत से जुड़ी समस्याओं का निराकरण...
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