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अब बदल जाएगा न्यायाधीशों की नियुक्ति का 'फॉर्मूला'

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कोलेजियम सिस्टम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 को अपनाने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। नई प्रणाली के लिए अब तक 15 राज्यों ने अपनी सहमति दे दी है। जल्द ही सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति इसके तहत होने लगेगी। अगस्त महीने में यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका...

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अभिव्यक्ति का अधिकार

जनसत्ता,(संपादकीय)पिछले कुछ सालों में इस पर काफी चिंता जाहिर की जा चुकी है कि फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के मंचों पर कुछ टिप्पणियों के आधार पर जिस तरह सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है, उसका देश के लोकतांत्रिक ढांचे और बुनियादी उसूलों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। खासकर सूचना तकनीक कानून की धारा 66-ए पर कई सवाल उठाए गए और अदालतों में इसके खिलाफ...

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बराबरी का फलसफा और हम - गोपालकृष्‍ण गांधी

साम्यवाद का भविष्य। यह भी आज किसी लेख का विष्ाय हो सकता है क्या? कांग्रेस का भविष्य, नेहरू-गांधी परिवार का भविष्य, लोकतांत्रिकता का भविष्य, अल्पसांख्यिकता का भ्ाविष्य, स्वतंत्र विचार, स्वतंत्र लेखन, स्वतंत्र चिंतन का भविष्य, इन सब पर सोच वाजिब और लाजिम है। लेकिन साम्यवाद..? साम्यवाद करके जब कुछ रहा ही नहीं है, उस नाम के दोनों दलों माकपा और भाकपा के जब लोकसभा में सदस्य ही नहीं के बराबर हैं,...

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नसबंदी कांड की कड़ियां- कनक तिवारी

जनसत्ता 17 नवंबर, 2014: बिलासपुर नसबंदी कांड राज्यतंत्र की क्रूरता का बेहद घिनौना उदाहरण है। केंद्र प्रवर्तित और राज्य पोषित नसबंदी कार्यक्रम को लागू करने में इतनी लोकविधर्मी विसंगतियां हैं। पर इन्हें सरकारी अहंकार समझना ही नहीं चाहता। जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाने के लिए केंद्रीय शासन ने बरसों से अंतरराष्ट्रीय स्थितियों, समझौतों और समझाइशों के तहत नीतियां बनाने का प्रयत्न किया है। शासन और भद्रलोक के उपचेतन में इस मुगालते...

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गंगा योजना बनाम विकास नीति - कृष्णदत्त पालीवाल

महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्म-बोध, ज्ञान-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है। भारतीय जन-मानस की...

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